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हक रिव्यू : यामी गौतम और इमरान हाशमी की दमदार अदाकारी, सच्चाई से जुड़ी एक संवेदनशील कहानी

‘हक’ एक संवेदनशील कोर्टरूम ड्रामा है जो शाह बानो केस से प्रेरित होकर महिला अधिकार, धर्म और न्याय की लड़ाई को सशक्त अभिनय और सधी हुई कहानी के साथ दर्शाता है।

निर्देशक सुपर्ण एस. वर्मा द्वारा निर्देशित फिल्म हक’ एक गहन और संवेदनशील विषय पर आधारित कोर्टरूम ड्रामा है। यह फिल्म 1980 के दशक के प्रसिद्ध शाह बानो केस से प्रेरित है, जो मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों पर देशव्यापी बहस का कारण बना था।

फिल्म की कहानी शाजिया बानो (यामी गौतम धर) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक साधारण मुस्लिम परिवार से आती हैं। उनका पति अब्बास खान (इमरान हाशमी) एक नामी वकील है, जो कानून की गहरी समझ रखता है लेकिन धार्मिक परंपराओं का ज्यादा पालन नहीं करता। जब अब्बास दूसरी शादी कर लेता है, तो शाजिया का जीवन अचानक बिखर जाता है। इसके बाद वह अपने अधिकारों के लिए अदालत की लड़ाई लड़ती है।

फिल्म दिखाती है कि कैसे शाजिया अपने पिता (दानिश हुसैन) के समर्थन से सत्र न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक न्याय की लड़ाई लड़ती है। वकील बेला जैन (शीबा चड्ढा) और उनके सहायक फराज़ अंसारी (असीम हत्तनगडी) उसके साथ खड़े होते हैं।

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हक’ का सबसे बड़ा गुण इसकी संतुलित प्रस्तुति है — यह न तो धार्मिक कट्टरता का प्रचार करती है, न ही किसी समुदाय को दोषी ठहराती है। बल्कि यह एक महिला के आत्मसम्मान, न्याय और समानता की लड़ाई को सम्मानजनक ढंग से सामने लाती है।

यामी गौतम और इमरान हाशमी दोनों ने अपने किरदारों में गहराई और भावनात्मक ताकत भरी है। फिल्म अपने संदेश को बिना अतिनाटकीयता के सटीक तरीके से प्रस्तुत करती है।

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