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बिहार SIR विवाद के केंद्र में प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत: नुकसान पहुँचाने से पहले सुनवाई का अधिकार

बिहार SIR विवाद में मुख्य मुद्दा यह है कि मतदाता सूची में बदलाव करते समय चुनाव आयोग को प्राकृतिक न्याय का पालन कर प्रत्येक नागरिक को सुनवाई का अवसर देना चाहिए।

बिहार SIR विवाद का मूल प्रश्न प्राकृतिक न्याय के उस सिद्धांत से जुड़ा है, जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने से पहले उसकी बात अवश्य सुनी जानी चाहिए। यह विवाद चुनाव आयोग (ECI) के अधिकार और नागरिकों के मताधिकार के बीच संतुलन पर केंद्रित है।

क़ानून द्वारा तय किए गए कठोर मानक और प्रक्रियाएँ बताती हैं कि मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के मामले में चुनाव आयोग को कैसे कार्य करना चाहिए। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को चुनावों के संचालन पर सर्वोच्च अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 326 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) की धारा 62 आम नागरिकों — यानी “छोटे आदमी” — को मतदान का अधिकार सुनिश्चित करते हैं।

इन प्रावधानों का उद्देश्य यह है कि चुनाव आयोग अपने अधिकार का प्रयोग करते समय मनमानी न करे और हर व्यक्ति को न्यायपूर्ण अवसर मिले। नामांकन या नाम हटाने की प्रक्रिया में उचित सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित करना प्राकृतिक न्याय का मूल सिद्धांत है। यदि किसी का नाम हटाया या रोका जाता है, तो उससे पहले उसकी बात सुनना न केवल संवैधानिक अपेक्षा है, बल्कि लोकतांत्रिक गरिमा की शर्त भी है।

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बिहार SIR मामले ने यह सवाल उठा दिया है कि क्या चुनाव आयोग इन प्रक्रियाओं का पालन कर रहा है और क्या नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा पर्याप्त है। यह विवाद एक बड़े सिद्धांत को सामने लाता है — लोकतंत्र में चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का माध्यम नहीं, बल्कि हर नागरिक की आवाज़ को सम्मान देने की प्रक्रिया है।

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