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पद छोड़ने के बाद आवास न खाली करने वाले नेताओं की जिद: पटना से दिल्ली तक जारी संघर्ष

बिहार से दिल्ली तक कई नेता पद छोड़ने के बाद भी सरकारी आवास खाली नहीं करते। कानूनी लड़ाइयाँ, राजनीतिक दबाव और प्रतिष्ठा का भाव इस समस्या को लगातार बढ़ाते हैं।

बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी को लगभग दो दशक पहले पद के आधार पर आवंटित ‘10, सर्कुलर रोड’ आवास खाली करने के आदेश दिए गए हैं। इस आदेश पर आपत्ति जताना और व्यक्तिगत असुविधा का हवाला देना कोई अनोखा मामला नहीं है। पिछले बीस वर्षों में यह बंगला, अपनी औपनिवेशिक शैली और विशाल लॉन के कारण, बिहार की सत्ता का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। राबड़ी देवी को विपक्ष के नेता के रूप में वैकल्पिक आवास भी आवंटित किया गया, फिर भी खाली करने से इनकार किया गया।

तेजस्वी यादव ने भी उपमुख्यमंत्री के तौर पर मिले आलीशान आवास को छोड़ने से इनकार किया था। जदयू और राजद गठबंधन टूटने के बाद उन्हें इसे खाली करने का निर्देश मिला। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें घर खाली करना पड़ा, जिसके बाद वह आवास नए उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को आवंटित किया गया। तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव को भी मंत्री के लिए आवास खाली करने के निर्देश मिले हैं।

देश के अन्य हिस्सों में भी पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद लंबे समय तक सरकारी आवास छोड़ने से बचते रहे हैं। 2018 में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने अपने आवास खाली करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा। वहीं, 2018 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दत्तक पुत्री नमिता ने दिल्ली का बड़ा सरकारी आवास स्वेच्छा से छोड़ने की इच्छा जताई—ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं।

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2024 में 200 से अधिक पूर्व सांसदों को सरकारी आवास खाली करने के नोटिस जारी किए गए। महुआ मोइत्रा, अजित सिंह और कई अन्य नेताओं से भी कानूनी प्रक्रिया के तहत आवास खाली करवाए गए। राजधानी और राज्यों में यह मुद्दा बार-बार राजनीतिक विवाद का कारण बनता रहता है।

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