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क्या भारत को अपने दत्तक ग्रहण नियमों को आसान बनाना चाहिए?

भारत में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया बेहद जटिल और समय लेने वाली मानी जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसे सरल बनाकर अधिक बच्चों को स्थायी घर मिल सकते हैं।

भारत में दत्तक ग्रहण (Adoption) की प्रक्रिया कई वर्षों से अत्यधिक कठोर, समय-साध्य और कानूनी पेचिदगियों से भरी हुई मानी जाती है। वर्तमान प्रणाली के तहत इच्छुक माता-पिता को लंबा इंतजार, विस्तृत कागज़ी कार्यवाही और कड़े मूल्यांकन से गुजरना पड़ता है। ऐसे में सवाल उठता है — क्या भारत को अपने दत्तक ग्रहण नियमों में ढील देनी चाहिए?

वर्तमान में भारत में केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, लेकिन आंकड़ों के अनुसार, देश में लाखों अनाथ या परित्यक्त बच्चे हैं, जिनमें से बहुत कम को गोद लिया जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इससे न केवल गोद लेने की दर प्रभावित होती है, बल्कि बच्चों का पुनर्वास भी बाधित होता है।

कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि नियमों को थोड़ा लचीला बनाया जाए, तो अधिक लोगों को बच्चों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसमें घरेलू दत्तक ग्रहण के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं को भी सरल बनाने की ज़रूरत है।

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हालांकि, कुछ विशेषज्ञ यह भी चेतावनी देते हैं कि प्रक्रियाओं में अत्यधिक ढील देने से बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों पर असर पड़ सकता है। इसलिए, संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है—जहां प्रक्रिया सरल हो, लेकिन निगरानी और जवाबदेही भी बनी रहे।

यह बहस भारत में बच्चों के संरक्षण और स्थायी परिवार मुहैया कराने के प्रयासों को नई दिशा दे सकती है।

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