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प्रशांत किशोर, मायावती और ओवैसी: छोटे दलों ने बिहार चुनाव में बदला बड़ा गणित

जन सुराज, BSP और AIMIM ने 63 सीटों पर सीधा असर डाला, जिससे विपक्षी वोट बंट गए। वोट विभाजन का फायदा NDA को मिला और उसने 202 सीटें जीत लीं।

बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार नतीजे 2010 की तरह NDA के भारी जीत की याद दिलाते हैं, लेकिन राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं। जनता ने एक बार फिर NDA पर भरोसा जताया और गठबंधन को 202 सीटें दीं, जबकि महागठबंधन (MGB) केवल 35 सीटों पर सिमट गया। यह नतीजा दोनों ही पक्षों के लिए अप्रत्याशित रहा।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह परिणाम सभी के लिए अविश्वसनीय है, क्योंकि किसी दल का 90% स्ट्राइक रेट पहले कभी नहीं देखा गया। पार्टी बिहार से डेटा इकठ्ठा कर विश्लेषण कर रही है।

लेकिन बड़े आंकड़ों से परे, इस चुनाव की असली कहानी छोटे दलों की भूमिका और उनके असर में छिपी है।

जन सुराज पार्टी का प्रभाव

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और भले ही एक भी सीट न जीत सकी, लेकिन उसने कुल 3.4% वोट हासिल कर चुनाव में बड़ा बदलाव पैदा किया। पार्टी ने 238 सीटों पर चुनाव लड़ा और 33 सीटों पर उसका वोट शेयर जीत के मार्जिन से ज्यादा रहा। इनमें NDA ने 18 और MGB ने 13 सीटें जीतीं। यानी जन सुराज ने दोनों पक्षों को चोट पहुंचाई।

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BSP और AIMIM का रोल

मायावती की BSP ने 181 सीटों पर चुनाव लड़ा, एक सीट जीती और एक पर दूसरे स्थान पर रही। चुनावी आंकड़े बताते हैं कि BSP ने महागठबंधन को NDA से ज्यादा नुकसान पहुंचाया। 20 सीटों पर BSP के वोट जीत के मार्जिन से ज्यादा थे, जिनमें 18 NDA और 2 MGB ने जीतीं।

ओवैसी की AIMIM ने 5 सीटें जीतकर अपने 2020 के प्रदर्शन को दोहराया। 9 सीटों पर AIMIM के वोट जीत के मार्जिन से ज्यादा रहे, जिनमें 67% सीटें NDA ने जीतीं।

संयुक्त प्रभाव

RJD और कांग्रेस के लिए यह बिहार में सबसे खराब प्रदर्शन रहा। RJD को 23.4% वोट मिले, लेकिन केवल 25 सीटें जीतीं, जबकि BJP और JDU ने तीन गुना ज्यादा सीटें लीं।
243 में से 63 सीटों पर जन सुराज, BSP और AIMIM ने चुनावी परिणामों को सीधे प्रभावित किया। तीनों दलों ने विपक्षी वोट को विभाजित कर दिया—दलित वोट BSP की ओर, मुस्लिम वोट AIMIM की ओर और युवा-विकास वोट जन सुराज की ओर गए, जिससे NDA ने कड़े मुकाबलों को भी आसानी से जीत में बदला।

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