क्या संदेह के आधार पर नागरिकता पर खतरा? SIR सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में उठाए सवाल
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि SIR केवल संदेह के आधार पर नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकती है और उन्हें राज्यविहीन बनाने का खतरा पैदा करती है।
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि चुनाव आयोग ने मात्र “संदेह” के आधार पर मतदाता सूची की शुद्धता की जांच को एक विशाल राष्ट्रीय अभियान में बदल दिया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस प्रक्रिया से न केवल मताधिकार छिन सकता है, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों के “राज्यविहीन” होने का खतरा भी पैदा हो सकता है।
याचिकाकर्ता पक्ष की ओर से उपस्थित अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि SIR प्रक्रिया नागरिकता पर सामूहिक रूप से प्रश्न उठाती है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। उन्होंने पूछा, “क्या केवल संदेह के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है? क्या एक संदेह, एक शक, किसी को राज्यविहीन कर सकता है? इस शक्ति का आधार क्या है?”
उन्होंने तर्क दिया कि चुनाव आयोग एक “तानाशाह” जैसी भूमिका में आ गया है, जिसके हाथों में इतनी व्यापक जांच की शक्ति नहीं हो सकती। ग्रोवर ने यह भी कहा कि SIR प्रक्रिया लोगों को ‘अनिश्चित नागरिकता’ की स्थिति में धकेल सकती है, जिससे सामाजिक और कानूनी असुरक्षा बढ़ेगी।
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मुख्य न्यायाधीश सुर्या कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना और अगले चरण की दलीलों के लिए मामले को आगे सूचीबद्ध किया। अदालत इस मुद्दे पर विचार कर रही है कि क्या SIR प्रक्रिया वास्तव में केवल मतदाता सूची को सुधरने का साधन है या यह नागरिकता की व्यापक और अनुचित जांच में बदल रही है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि SIR जैसी प्रक्रियाएं लोकतांत्रिक अधिकारों, विशेषकर मतदान के अधिकार, पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं, और संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा को कमजोर कर सकती हैं।
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