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पुतिन की भारत यात्रा से पहले तीन देशों के राजनयिकों का लेख, नई दिल्ली ने जताई नाराज़गी

पुतिन की भारत यात्रा से पहले तीन पश्चिमी राजनयिकों के लेख ने नई दिल्ली को नाराज़ किया। लेख में रूस की आलोचना की गई, जबकि भारत ने अपने संतुलित रुख को दोहराया है।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के भारत में तैनात राजनयिकों द्वारा लिखे गए एक संयुक्त लेख ने नई दिल्ली को नाराज़ कर दिया है। यह लेख तीनों देशों के शीर्ष प्रतिनिधियों – फ्रांसीसी राजदूत थियरी माथू, जर्मन उच्चायुक्त फिलिप ऐकरमैन और ब्रिटेन की उच्चायुक्त लिन्डी कैमरून – के नाम हैं।

विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने इस लेख का संज्ञान लिया है और इसके समय को “बहुत असामान्य” बताया। अधिकारियों ने कहा, “भारत के किसी तीसरे देश के साथ संबंधों पर सार्वजनिक उपदेश देना स्वीकार्य राजनयिक व्यवहार नहीं है।”

इस लेख का शीर्षक है – विश्व यूक्रेन युद्ध समाप्त करना चाहता है, लेकिन रूस शांति के प्रति गंभीर नहीं दिखता’ लेख में रूस पर यूक्रेन में जारी युद्ध और ड्रोन व मिसाइल हमलों के लिए तीखी आलोचना की गई है। राजनयिकों ने लिखा कि ये हमले “शांति के प्रति गंभीरता नहीं दिखाते” और रूस ने “निर्मम आक्रामकता” के साथ युद्ध चुना है।

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लेख में कहा गया है कि जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन—जो तीनों नाटो सदस्य हैं—यूक्रेन को “अटूट समर्थन” देते रहेंगे। उन्होंने लिखा, “जब तक राष्ट्रपति पुतिन गंभीर शांति वार्ता में देरी करते रहेंगे, हम यूक्रेन को सैन्य और गैर-सैन्य सहायता बढ़ाते रहेंगे ताकि वह अपने लोगों और संप्रभुता की रक्षा कर सके।”

इस लेख का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि पुतिन प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर भारत-रूस शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए जल्द ही दिल्ली पहुंचने वाले हैं।

अपनी यात्रा से पहले पुतिन ने कहा कि रूस भारत और चीन के साथ सहयोग को “नई ऊँचाई” पर ले जाने का लक्ष्य रखता है, खासकर ऊर्जा, उद्योग, अंतरिक्ष और कृषि जैसे क्षेत्रों में।

2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से भारत ने किसी भी पक्ष का समर्थन करने से परहेज किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है कि “यह युद्ध का युग नहीं है”। भारत ने रूस से तेल खरीद जैसे मामलों पर भी पश्चिमी दबाव को खारिज किया था।

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