असम में नेली हत्याकांड रिपोर्ट पेश, 1983 आंदोलन के दौरान BJP की भूमिका पर फिर गरमाई राजनीति
असम सरकार ने नेली हत्याकांड से जुड़ी आयोग रिपोर्टें पेश की। कांग्रेस ने आरोप लगाए कि यह कदम माहौल को साम्प्रदायिक बनाने के लिए है, जबकि BJP इसे प्रवासन रोकने की बहस से जोड़ रही है।
असम सरकार ने 25 नवंबर को 1983 के नेली हत्याकांड से संबंधित त्रिभुवन प्रसाद तिवारी आयोग और टी.यू. मेहता आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश कर दी है। इन रिपोर्टों के जरिए हिमंत बिस्वा सरमा सरकार कांग्रेस पर undocumented बांग्लादेशी प्रवासियों को रोकने में “विफलता” का आरोप और भी तीखे ढंग से उठाने की तैयारी में दिखाई दे रही है। वहीं, कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष देबव्रत सैकिया ने आरोप लगाया कि सरकार ने वर्तमान हालात को “और अधिक साम्प्रदायिक बनाने” के इरादे से यह रिपोर्टें सदन में रखी हैं।
नेली हत्याकांड 18 फरवरी 1983 को हुआ था और इसे असम आंदोलन के दौरान undocumented बांग्लादेशी प्रवास के विरोध में उपजे सबसे भीषण हिंसक घटनाक्रम के रूप में देखा जाता है। यह घटना कई घंटों तक चली थी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1,800 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें ज्यादातर बंगाली मूल के मुस्लिम थे। वहीं, अनौपचारिक अनुमान इस संख्या को लगभग 3,000 बताते हैं। इस हत्याकांड के बाद दो महीनों में 668 एफआईआर दर्ज की गई थीं, लेकिन किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया।
राजनीतिक दृष्टि से यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 1983 के असम विधानसभा चुनावों के बहिष्कार के आह्वान में बीजेपी ने आंदोलनकारियों का समर्थन किया था। पार्टी आज भी इस चुनाव को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराती है। अब जब रिपोर्टें सार्वजनिक हुई हैं, तो 1980 के दशक के उस दौर में बीजेपी की भूमिका और कांग्रेस की नीतियों पर राजनीतिक बयानबाज़ी तेज होने की संभावना है।
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समय के साथ नेली हत्याकांड असम की राजनीति में एक संवेदनशील और विभाजनकारी मुद्दा बना रहा है, और रिपोर्टों का पेश होना एक बार फिर इसे राजनीतिक केंद्र में ले आया है।
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