संविधान दिवस: भारत के लोकतांत्रिक यात्रा का इतिहास और महत्व
भारत का संविधान दिवस 26 नवंबर को संविधान के निर्माण, संविधान सभा के योगदान और लोकतंत्र के मूल्यों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यह देश की लोकतांत्रिक पहचान का प्रतीक है।
भारत में हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारत के संविधान के निर्माण, उसके अपनाए जाने और उन महान नेताओं के योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत की नींव रखी। यह तिथि भारत की उस ऐतिहासिक यात्रा को भी दर्शाती है, जब देश ने औपनिवेशिक कानून व्यवस्था को पीछे छोड़कर अपने स्वयं के शासन ढांचे को अपनाया। संविधान दिवस देश को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों को याद दिलाता है और नागरिकों को इन सिद्धांतों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।
संविधान दिवस का इतिहास:
1935 के भारत सरकार अधिनियम के बाद यह महसूस किया गया कि भारत को एक संप्रभु और लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के लिए स्पष्ट नियमों और एक मजबूत संविधान की आवश्यकता है। इसी दिशा में दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष चुने गए और बाद में वे भारत के पहले राष्ट्रपति बने। संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें डॉ. बी.आर. आंबेडकर, सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेता शामिल थे।
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई। डॉ. आंबेडकर को संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। लगभग 2 वर्ष और 11 महीनों की कठिन मेहनत के बाद 1948 में मसौदा प्रस्तुत किया गया। इसे 11 सत्रों में दो वर्षों से अधिक समय तक चर्चा के बाद संशोधित किया गया और अंततः 26 नवंबर 1949 को संविधान को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।
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यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिसके बाद हर वर्ष गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। संविधान दिवस हमें उन सिद्धांतों की याद दिलाता है, जिनसे भारत एक मजबूत लोकतांत्रिक राष्ट्र बना है।
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