क्या केंद्र राष्ट्रपति संदर्भ के ज़रिये सुप्रीम कोर्ट से खुद का फैसला बदलवाना चाहता है?
केरल और तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा कि क्या केंद्र राष्ट्रपति संदर्भ का उपयोग कर 8 अप्रैल के फैसले को पलटवाना चाहता है। अदालत इस संवैधानिक विवाद की सुनवाई कर रही है।
दो दक्षिणी राज्य, केरल और तमिलनाडु, ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया है कि क्या केंद्र सरकार दुर्लभ राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) प्रक्रिया का उपयोग कर अदालत को ऐसी “राय” देने के लिए प्रेरित कर रही है जो उसके ही “बाध्यकारी” फैसले को पलट दे।
राष्ट्रपति संदर्भ के तहत, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राज्यपालों की शक्तियों और कर्तव्यों पर स्पष्टीकरण मांगा है। लेकिन केरल और तमिलनाडु का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही अपने 8 अप्रैल के फैसले में इस विषय पर स्पष्ट दिशा-निर्देश दे चुका है। ऐसे में इस संदर्भ का उद्देश्य संदिग्ध प्रतीत होता है और यह अदालत के ही निर्णय को कमजोर करने की कोशिश हो सकती है।
दोनों राज्यों का आरोप है कि यह कदम राजनीतिक मकसद से उठाया गया है, ताकि पहले दिए गए फैसले की प्रभावशीलता कम की जा सके। उनका तर्क है कि राष्ट्रपति संदर्भ संवैधानिक प्रावधान है, लेकिन इसका उपयोग तभी किया जाना चाहिए जब किसी कानूनी प्रश्न पर वास्तविक अस्पष्टता हो। पहले से दिए गए फैसले को दरकिनार करने के लिए इसका इस्तेमाल करना संवैधानिक व्यवस्था और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
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सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रहा है। संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद न केवल राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति-संतुलन से जुड़ा है, बल्कि न्यायपालिका की गरिमा और उसके निर्णयों की बाध्यता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। अदालत को तय करना होगा कि क्या यह संदर्भ स्वीकार योग्य है या नहीं।
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