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पूर्व समलैंगिक जोड़े की कानूनी लड़ाई से भारत के लिंग और विवाह कानून पर उठे सवाल

दिल्ली हाई कोर्ट में एक समलैंगिक जोड़े का मामला इस सवाल पर केंद्रित है कि क्या ‘पति-पत्नी’ आधारित कानून समलैंगिक संबंधों पर लागू हो सकते हैं।

भारत के विवाह और लिंग कानूनों की सीमाओं को परखने वाला एक अनोखा मामला इस समय दिल्ली उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। एक लिंग असंतुलन (Gender Dysphoria) से पीड़ित महिला याचिकाकर्ता ने अपनी पूर्व समलैंगिक साथी द्वारा दर्ज कराई गई दो एफआईआर (FIR) को निरस्त करने की मांग की है।

पहली याचिका में, याचिकाकर्ता ने उस एफआईआर को रद्द करने की अपील की है, जिसमें उसे धारा 498ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा स्त्री पर क्रूरता) के तहत आरोपी बनाया गया है। यह धारा आमतौर पर पति-पत्नी के बीच घरेलू हिंसा या उत्पीड़न के मामलों में लागू होती है। दूसरी याचिका में उसने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत चल रही कार्यवाही को रद्द करने की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि दोनों पक्ष समलैंगिक संबंध में थे, न कि पारंपरिक “पति-पत्नी” के रूप में।

याचिकाकर्ता वर्तमान में लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजर रही है और न्यायालय से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि क्या समलैंगिक संबंधों पर ऐसे कानून लागू हो सकते हैं जो “पति” और “पत्नी” की परिभाषा पर आधारित हैं।

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यह मामला भारत में समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता न मिलने के बावजूद, ऐसे संबंधों में उत्पन्न कानूनी विवादों पर महत्वपूर्ण सवाल उठा रहा है। न्यायालय को यह तय करना होगा कि क्या भारतीय दंड संहिता और घरेलू हिंसा कानून के प्रावधान समलैंगिक संबंधों पर भी लागू हो सकते हैं या नहीं।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भविष्य में भारत में लिंग पहचान, विवाह समानता और कानूनी संरक्षण से जुड़े मामलों की दिशा तय कर सकता है।

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