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17 साल बाद बांग्लादेश वापसी: खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की वापसी का राजनीतिक महत्व

17 साल बाद तारिक रहमान की बांग्लादेश वापसी फरवरी चुनावों से पहले अहम मानी जा रही है। बीएनपी को प्रबल दावेदार माना जा रहा है और ‘बांग्लादेश फर्स्ट’ नीति फिर चर्चा में है।

बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की गतिविधियों के बीच, फरवरी में प्रस्तावित चुनावों से पहले एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया है। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे, उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान गुरुवार को 17 साल बाद बांग्लादेश लौट रहे हैं। उनकी वापसी को देश की मौजूदा राजनीति में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। बीएनपी को उनकी वापसी के मौके पर स्वागत कार्यक्रम आयोजित करने की अनुमति भी मिल गई है।

तारिक रहमान की वापसी ऐसे समय हो रही है जब बांग्लादेश एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। उनकी पार्टी बीएनपी को फरवरी 2026 के चुनावों में प्रबल दावेदार माना जा रहा है और किसी बड़े उलटफेर के बिना उसकी जीत की संभावना मजबूत बताई जा रही है। कई विश्लेषकों का मानना है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने, खासकर विदेश नीति के मामले में, लापरवाही बरती है। इस पृष्ठभूमि में तारिक रहमान ने बीएनपी की संभावित विदेश नीति को स्पष्ट रूप से सामने रखा है।

इस साल मई में तारिक रहमान ने चुनाव और सुधारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए सवाल उठाया था कि बिना निर्वाचित जनादेश के मोहम्मद यूनुस को दीर्घकालिक विदेश नीति तय करने का अधिकार कैसे है। उन्होंने ‘बांग्लादेश फर्स्ट’ नीति की बात करते हुए स्पष्ट कहा था—“न दिल्ली, न पिंडी, सबसे पहले बांग्लादेश।” यह रुख यूनुस की उस नीति से अलग है, जिसमें भारत के साथ पारंपरिक संबंधों की कीमत पर पाकिस्तान के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश दिखाई देती है।

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बीएनपी ने शेख हसीना सरकार पर लोकतंत्र के क्षरण और ‘फासीवादी’ रवैये का आरोप लगाया है, वहीं यूनुस सरकार से भी उसके कई मुद्दों पर मतभेद रहे हैं। माना जाता है कि बीएनपी के दबाव में ही फरवरी में चुनाव की घोषणा की गई। शेख हसीना की अवामी लीग के चुनाव से बाहर होने के बाद बीएनपी बांग्लादेश की राजनीति के केंद्र में आ गई है।

तारिक रहमान ने खुद को और अपनी पार्टी को लोकतंत्र और निर्वाचित सरकार की वापसी का समर्थक बताते हुए कहा है कि केवल लोकतंत्र ही देश को इस संकट से बाहर निकाल सकता है। 2008 में जेल से रिहा होने के बाद वे परिवार के साथ विदेश चले गए थे और तब से वहीं रह रहे थे। अब उनकी वापसी को बांग्लादेश की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

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