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भीख मांगने वालों के आश्रय गृह जेलों से भी बदतर, मनमाने ढंग से चलाए जा रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देशभर के भीख मांगने वालों के आश्रय गृह जेलों से भी बदतर हालत में हैं। अदालत ने स्वास्थ्य जांच, ऑडिट और सुविधाओं में सुधार के निर्देश दिए।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में देशभर के भीख मांगने वालों के आश्रय गृहों की स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है। अदालत ने टिप्पणी की कि ये आश्रय गृह जेलों से भी बदतर हालात में चल रहे हैं और राज्य सरकारें इन्हें “मनमानी चैरिटी” की तरह संचालित कर रही हैं।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इन आश्रय गृहों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान के तहत हर व्यक्ति को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन आश्रय गृहों की दुर्दशा इस अधिकार का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसमें सभी आश्रय गृहों में नियमित स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था करने, स्वतंत्र ऑडिट कराने और आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने का आदेश शामिल है। अदालत ने कहा कि आश्रय गृहों में रहने वालों को स्वास्थ्य सेवाएं, स्वच्छता और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना राज्यों की जिम्मेदारी है।

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फैसले में यह भी कहा गया कि सरकारें इन संस्थानों को केवल “औपचारिक कर्तव्य” समझकर न चलाएं, बल्कि इन्हें संवेदनशीलता और जवाबदेही के साथ संचालित करें। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि हर राज्य एक निगरानी समिति गठित करे, जो आश्रय गृहों की स्थिति की समय-समय पर समीक्षा करे और रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न केवल आश्रय गृहों की स्थिति सुधारने में मदद करेगा बल्कि समाज के हाशिये पर जी रहे लोगों के जीवन स्तर को भी बेहतर बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।

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