सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा: क्या राज्य सरकारें राज्यपालों की मर्ज़ी पर निर्भर हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि क्या राज्यपालों को विधेयकों को रोकने या मंजूरी देने के लिए पूर्ण शक्ति दी जा रही है, जिससे निर्वाचित सरकारों की क्षमता प्रभावित होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कड़ा सवाल किया है कि क्या निर्वाचित राज्य सरकारें राज्यपालों की मर्ज़ी पर निर्भर हो गई हैं, जब राज्यपाल विधेयकों को रोकते या मंजूरी देने में देरी करते हैं। यह सवाल राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों की ओर से उठाया गया।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने विशेष रूप से यह पूछा कि क्या राज्यपालों को निर्वाचित प्रतिनिधियों के ऊपर अपील करने की पूरी शक्ति दी जा रही है। न्यायालय ने केंद्र से पूछा कि संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या किस प्रकार की जा रही है और क्या यह राज्यपालों को यह अधिकार देता है कि वे विधेयकों को अपने विवेकानुसार रोकें या विलंबित करें।
इस सुनवाई में यह मुद्दा उभरा कि कई बार राज्यपालों की मर्जी से महत्वपूर्ण बिलों की मंजूरी में देरी हुई है, जिससे राज्य की शासन प्रक्रिया प्रभावित हुई है। अदालत ने यह भी ध्यान आकर्षित किया कि यदि राज्यपालों को अत्यधिक शक्ति दी जाती है, तो यह लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारों के अधिकारों पर प्रभाव डाल सकता है।
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सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपने तर्क पेश किए कि अनुच्छेद 200 राज्यपाल को विधेयक पर विचार करने और आवश्यक मामलों में राष्ट्रपति को रिपोर्ट करने का अधिकार देता है। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों को अत्यधिक विवेकाधिकार देने की व्याख्या संविधान की मूल भावना के विपरीत हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस सुनवाई का निर्णय राज्य और केंद्र के बीच शक्ति संतुलन और लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्यक्षमता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण साबित होगा। अदालत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राज्य सरकारों की निर्वाचित कार्यपालिका को विधायी प्रक्रिया में उचित स्वतंत्रता प्राप्त रहे।
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