ज़रूरत पड़ने पर सहयोगी, न पड़ने पर अनदेखी: नई अमेरिकी रणनीति में भारत की चुनौती
अमेरिका की नई NSS भारत को इंडो-पैसिफिक साझेदार और चीन-प्रतिस्पर्धा का उपकरण मानती है। विश्लेषण के अनुसार भारत को अपने हित स्पष्ट रखते हुए अमेरिकी रणनीति का संतुलित उपयोग करना चाहिए।
अमेरिका की नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी (NSS) 2025 ऐसे समय में जारी हुई है जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा समाप्त हुई। जहां दिल्ली और मॉस्को अपने रणनीतिक सहयोग को विस्तार दे रहे थे, वहीं वॉशिंगटन अपनी नई विश्व रणनीति प्रस्तुत कर रहा था। यह रणनीति दुनिया के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण को सीमित करती है, चीन के साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा को केंद्र में रखती है और साझेदारियों को अमेरिकी प्रभुत्व बनाए रखने के उपकरण के रूप में देखती है।
33-पन्नों के दस्तावेज़ में कहा गया है कि अमेरिका अब “हर समस्या की जिम्मेदारी” नहीं लेगा। यह पश्चिमी गोलार्ध को प्राथमिकता देता है और 21वीं सदी के “मॉनरो सिद्धांत” का विस्तार प्रस्तुत करता है—अर्थात अमेरिका अपने क्षेत्र को सुरक्षित करेगा और अन्य क्षेत्रों में चुनिंदा हस्तक्षेप करेगा।
नई रणनीति 2022 NSS से अलग है, जो लोकतंत्र और वैश्विक मुद्दों पर जोर देती थी। नई NSS लेन-देन आधारित भाषा अपनाती है—टैरिफ, तकनीकी मानक, सप्लाई चेन और महत्वपूर्ण खनिजों पर नियंत्रण।
और पढ़ें: ट्रंप प्रशासन ने फैक्ट-चेकर्स और सेंसर के लिए वीज़ा पर लगाई रोक, भारतीयों पर बड़ा असर
भारत इस रणनीति में सीमित रूप से दिखाई देता है—एक क्वाड साझेदार, इंडो-पैसिफिक में समुद्री और खनिज सहयोग का हिस्सा और चीन को मात देने के अमेरिकी ढांचे का घटक। हालांकि दोनों देशों की चीन को लेकर चिंता समान है, लेकिन अमेरिका का फोकस ताइवान पर है, जबकि भारत की चुनौती LAC और हिमालयी सीमा पर है।
दस्तावेज़ दक्षिण एशिया को लगभग नजरअंदाज करता है और भारत को मुख्यतः इंडो-पैसिफिक के रूप में प्रस्तुत करता है। इससे संकेत मिलता है कि अमेरिकी हस्तक्षेप अब क्षेत्रीय स्थिरता की बजाय चीन-प्रतिस्पर्धा पर आधारित होगा।
भारत के लिए यह स्थिति अवसर और जोखिम दोनों लाती है—एक ओर अमेरिकी न्यूनतावाद भारत को अपने पड़ोस में नेतृत्व का मौका देता है, दूसरी ओर यह आशंका पैदा करता है कि भारत को “सुविधाजनक साझेदार” की तरह इस्तेमाल किया जाए।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत को चाहिए कि वह इस रणनीति को अवसरों की सूची की तरह देखे—समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाए। साथ ही, भारत को अपने आर्थिक हितों को मजबूती से रखना होगा, ताइवान संघर्ष से दूर रहना होगा और यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व रूस के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने होंगे।
और पढ़ें: अमेरिका 30 से अधिक देशों पर ट्रैवल बैन बढ़ाने की तैयारी: होमलैंड सिक्योरिटी सचिव नोएम का बयान