भारत का मौन संकट: बढ़ती बुजुर्ग आबादी
भारत में बुजुर्ग आबादी तेजी से बढ़ रही है। 2050 तक हर पांचवां भारतीय 60 वर्ष से अधिक होगा। पेंशन, स्वास्थ्य और मानसिक देखभाल पर गंभीर नीतिगत कदम जरूरी हैं।
भारत एक ऐसे जनसांख्यिकीय बदलाव से गुजर रहा है जिसे विशेषज्ञ "मौन संकट" कह रहे हैं—बुजुर्ग होती आबादी। संसद में हाल ही में केंद्र सरकार ने यह याद दिलाया कि केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के तहत कर्मचारियों को 30 दिन का अवकाश मिलता है, जिसे वे अपने बुजुर्ग परिजनों की देखभाल के लिए उपयोग कर सकते हैं। यह प्रावधान ऐसे समय में महत्वपूर्ण है जब देश में 60 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है।
अनुमान है कि 2050 तक भारत में हर पांचवां व्यक्ति बुजुर्ग होगा। 2011 में जहां बुजुर्गों की संख्या लगभग 10.4 करोड़ थी, वहीं 2050 तक यह बढ़कर 34.7 करोड़ तक पहुंच सकती है। इस बदलाव के पीछे तीन मुख्य कारण हैं—घटती प्रजनन दर, मृत्यु दर में कमी और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि।
दिल्ली स्थित संकला फाउंडेशन की हालिया रिपोर्ट “Ageing in India: challenges and opportunities” इस परिदृश्य को गहराई से समझाती है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में वृद्धजनों के सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं—पुनर्वास और पेलियेटिव केयर की कमी, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, और आर्थिक असुरक्षा।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ती आबादी के लिए बहु-क्षेत्रीय और दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है। इसमें स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का सुदृढ़ीकरण, पेंशन सुधार और बुजुर्गों की गरिमा की रक्षा करने वाली नीतियां शामिल होनी चाहिए।
भारत में बढ़ती बुजुर्ग आबादी केवल स्वास्थ्य का ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे का भी महत्वपूर्ण प्रश्न है। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह मौन संकट आने वाले दशकों में गंभीर चुनौती बन सकता है।