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लद्दाख में 15,000 फीट की ऊंचाई पर 'आकाश प्राइम' मिसाइल ने रचा इतिहास, दो लक्ष्यों को साधा

लद्दाख में 15,000 फीट की ऊंचाई पर भारतीय सेना ने 'आकाश प्राइम' मिसाइल का सफल परीक्षण किया। इस मिसाइल ने दो तेज गति वाले ड्रोन जैसे लक्ष्यों को मार गिराया। यह प्रणाली अब ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी कारगर है।

लद्दाख की 15,000 फीट की ऊंचाई पर भारतीय सेना ने ‘आकाश प्राइम’ सतह-से-आकाश मिसाइल प्रणाली का ऐतिहासिक परीक्षण किया। परीक्षण के दौरान इस नई प्रणाली ने दो उच्च गति वाले मानवरहित हवाई लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया। यह पहली बार था जब आकाश प्राइम का परीक्षण इतनी ऊंचाई पर किया गया।

‘आकाश प्राइम’ दरअसल आकाश मार्क-1 और मार्क-1एस का उन्नत संस्करण है, जिनका उपयोग इस वर्ष मई में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान किया गया था। नई प्रणाली को 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में संचालन योग्य बनाया गया है और इसमें देश में विकसित नवीनतम रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) सीकर लगाया गया है, जो टर्मिनल चरण में लक्ष्य को ट्रैक कर नष्ट करता है।

यह मिसाइल प्रणाली भारतीय सेना की तीसरी और चौथी आकाश रेजिमेंट का हिस्सा बनेगी। इसकी रेंज 20 किलोमीटर तक है और यह इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेजर से सुसज्जित है। इसे मोबाइल प्लेटफॉर्म पर तैनात किया गया है, जिससे यह किसी भी मौसम और भू-भाग में अत्यधिक गतिशील और प्रभावी हो जाती है।

प्रत्येक लॉन्चर में तीन मिसाइलें होती हैं, जो ‘फायर एंड फॉरगेट’ मोड में काम करती हैं। प्रत्येक मिसाइल की लंबाई लगभग 20 फीट और वजन 710 किलोग्राम होता है, जिसमें 60 किलोग्राम का वारहेड होता है। यह मिसाइल रैमजेट रॉकेट प्रणोदन प्रणाली से चलती है और इसके भीतर एक डिजिटल ऑटोपायलट लगा होता है जो स्थिरता और नियंत्रण सुनिश्चित करता है।

यह प्रणाली पूरी तरह से स्वचालित है, और इसमें रियल-टाइम मल्टी-सेंसर डेटा प्रोसेसिंग और थ्रेट इवैल्यूएशन क्षमताएं हैं। इसके तहत लक्ष्य की पहचान, अधिग्रहण और उसे निष्क्रिय करने की प्रक्रिया तेज गति से होती है।

‘आकाश एनजी’ (नेक्स्ट जेनरेशन) संस्करण भी विकासाधीन है, जिसकी रेंज इससे अधिक होगी।

इस हथियार प्रणाली को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) ने विकसित किया है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस प्रणाली ने पाकिस्तान के हवाई हमलों को विफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब पाकिस्तान ने भारतीय शहरों और रक्षा ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास किया था।

भारत ने अपने एकीकृत वायु कमान एवं नियंत्रण प्रणाली (IACCS) को सक्रिय किया, जो विभिन्न बलों के डेटा को एकीकृत कर हवाई खतरों से निपटती है।

भारत की बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली के तहत अंदरूनी परत में कम ऊंचाई पर उड़ रहे ड्रोन को निष्क्रिय करने के लिए C-UAS, L-70, ZSU-23 शिल्का, और MANPADS जैसे हथियार होते हैं। दूसरी परत में स्पेसिफिक एरिया की रक्षा करने वाले पॉइंट डिफेंस सिस्टम होते हैं जैसे स्पाइडर, पेचोरा और ओसा-AK। तीसरी परत में माध्यम दूरी की मिसाइलें होती हैं जैसे आकाश और इंडो-इजरायली MRSAM, जबकि बाहरी परत में S-400 जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें और फाइटर जेट शामिल होते हैं।

भारतीय सेना के महानिदेशक (सैन्य अभियानों) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली की प्रभावशीलता को एक रोचक और प्रभावशाली क्रिकेट संदर्भ के माध्यम से समझाया। उन्होंने 1970 के दशक की प्रतिष्ठित एशेज टेस्ट सीरीज का उदाहरण दिया, जो ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच खेली जाती थी और क्रिकेट इतिहास की सबसे तीव्र और प्रतिस्पर्धी प्रतिद्वंद्विताओं में से एक मानी जाती है।

जनरल घई ने उस दौर के दो प्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाजों — जेफ थॉमसन (Jeff Thomson) और डेनिस लिली (Dennis Lillee) — का उल्लेख किया। ये दोनों गेंदबाज मिलकर विपक्षी बल्लेबाजी क्रम पर कहर बरपाते थे। उनके बारे में कहा जाता था कि अगर लिली विकेट न ले पाए, तो थॉमसन जरूर लेगा। इस भावना को दर्शाने के लिए उन्होंने एक प्रसिद्ध पंक्ति उद्धृत की:

"Ashes to Ashes, Dust to Dust, If Lillee don’t get you, Thommo must..."
(अर्थात्: चाहे लिली निपटाए या थॉमसन, अंततः आप बच नहीं सकते।)

इस वाक्य का मूल संदेश यही था कि दोनों गेंदबाज इतने प्रभावशाली और आक्रामक थे कि इंग्लैंड के बल्लेबाजों के पास उनके खिलाफ टिक पाने का कोई सुरक्षित विकल्प नहीं था।

जनरल घई ने इसी शैली में भारत की आकाशतीर प्रणाली की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि जैसे उस समय लिली और थॉमसन की जोड़ी इंग्लैंड के बल्लेबाजों के लिए अजेय थी, वैसे ही आज भारत की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली — जिसमें C-UASशॉर्ट रेंज मिसाइलेंमीडियम रेंज सिस्टम (जैसे आकाश और MRSAM), और लॉन्ग रेंज सिस्टम (जैसे S-400 और फाइटर जेट्स) शामिल हैं — दुश्मन के किसी भी हवाई हमले को रोकने में सक्षम है।

यह उदाहरण यह स्पष्ट करता है कि भारत की वायु सुरक्षा अब किसी एक प्रणाली या हथियार पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह एक इंटीग्रेटेड डिफेंस नेटवर्कहै, जिसमें हर परत एक खास प्रकार के खतरे के खिलाफ काम करती है। यदि एक सिस्टम से दुश्मन बच भी जाए, तो अगला उसे ज़रूर रोकेगा — ठीक वैसे ही जैसे थॉमसन और लिली की अजेय जोड़ी!

 
 
 
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