प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रचारक थे, विजेता या धर्मांतरक नहीं: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि प्राचीन भारतीय लोग संस्कृति का प्रचार करते थे, जबकि आक्रमणकारियों ने भारत को लूटा और लोगों के मनों पर कब्जा कर कमजोर किया।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय समाज का मूल उद्देश्य केवल संस्कृति का प्रचार और ज्ञान का प्रसार था, न कि किसी देश पर विजय प्राप्त करना या लोगों को धर्मांतरित करना।
भागवत ने तुलना करते हुए बताया कि प्राचीन भारतीयों की सोच और कार्य सौहार्दपूर्ण और मानवतावादी थे। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता ने सदैव अपने मूल्य, ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों को फैलाने पर जोर दिया, बजाय किसी सैन्य विजय या जबरन धर्मांतरण के।
उन्होंने इसके विपरीत कहा कि भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी शासकों ने केवल भौतिक संसाधनों की लूट नहीं की, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज और लोगों के मन पर भी कब्जा करने की कोशिश की। भागवत ने इसे “मन की लूट” कहा और बताया कि इससे भारत कमजोर हुआ।
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भागवत ने आगे कहा कि प्राचीन भारतीय समाज ने शिक्षा, कला, धर्म और सामाजिक मूल्यों के माध्यम से सांस्कृतिक प्रभाव फैलाया, जो आज भी विश्व स्तर पर प्रशंसित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारतीय सभ्यता का मूल उद्देश्य शांति, सहिष्णुता और सामूहिक भलाई पर आधारित था।
विश्लेषकों का कहना है कि मोहन भागवत के ये विचार भारतीय इतिहास और संस्कृति को सही रूप में समझाने का प्रयास है। यह दृष्टिकोण न केवल प्राचीन भारतीय सभ्यता की महानता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि विदेशी आक्रमणों से भारत को केवल भौतिक नुकसान नहीं हुआ, बल्कि सामाजिक और मानसिक प्रभाव भी पड़ा।
इस भाषण के माध्यम से भागवत ने लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की कि भारतीय सभ्यता की मूल आत्मा संस्कृति, ज्ञान और मानवता में निहित है, न कि विजय या सत्ता में।
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