बांके बिहारी मंदिर: उत्तर प्रदेश सरकार क्यों लेना चाहती है 150 साल पुराने कृष्ण मंदिर का नियंत्रण?
उत्तर प्रदेश सरकार बांके बिहारी मंदिर का नियंत्रण लेकर कॉरिडोर बनाने की योजना पर विचार कर रही है, परंपरा और विरासत को नुकसान के डर से स्थानीय संतों और श्रद्धालुओं का कड़ा विरोध जारी है।
उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर, जिसकी स्थापना लगभग 150 वर्ष पहले हुई थी, हाल ही में एक बार फिर राज्य सरकार की निगाहों में है। सरकार मंदिर प्रबंधन अपने अधीन लेने की योजना पर विचार कर रही है। इसका उद्देश्य मंदिर परिसर का विस्तार और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना बताया जा रहा है।
पिछले एक दशक में तीन लगातार राज्य सरकारों — चाहे वह किसी भी दल की रही हों — ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के विकास की योजना पेश की। हालांकि, हर बार यह योजना स्थानीय संतों, पुजारियों और श्रद्धालुओं के कड़े विरोध के कारण ठंडे बस्ते में चली गई।
आरोप है कि प्रस्तावित कॉरिडोर से सैकड़ों घरों और दुकानों को हटाना पड़ेगा, जिससे वृंदावन की पारंपरिक गलियों और स्थानीय जीवनशैली पर असर पड़ेगा। विरोधियों का कहना है कि सरकार विकास के नाम पर मंदिर की मौलिकता और उसकी आध्यात्मिक परंपरा को नुकसान पहुँचाना चाहती है।
सरकार का तर्क है कि मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की सुरक्षा, भीड़ प्रबंधन और बेहतर सुविधाओं के लिए आधुनिक ढांचा जरूरी है। साथ ही, तीर्थ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह योजना महत्वपूर्ण बताई जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा केवल धार्मिक भावना का ही नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और विरासत संरक्षण का भी है। फिलहाल मामला अदालत में लंबित है और सरकार के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी हैं।