बिहार चुनाव जातीय गणित के बावजूद दशकों के सत्ता संतुलन को चुनौती दे सकते हैं
बिहार चुनाव में जातीय गणित और परंपरागत सत्ता संतुलन चुनौतीपूर्ण स्थिति में हैं। प्रशांत किशोर की जन स्वराज पार्टी नए समीकरण और अप्रत्याशित परिणाम ला सकती है।
बिहार विधानसभा चुनाव में जातीय गणित और परंपरागत सत्ता समीकरणों के बावजूद बदलाव की संभावना दिखाई दे रही है। एनडीए की स्थिति पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत और यदि गठबंधन जीतता है तो पूर्ण कार्यकाल तक उनके बने रहने की संभावना सवाल उठाती है। वहीं, पिछले RJD शासन के दौरान “जंगल राज” का भय आज भी जनरेशन के लिए एक मानसिक त्रासदी के रूप में मौजूद है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस चुनाव में बदलाव का बड़ा कारक प्रबंधन सलाहकार प्रशांत किशोर हैं। उनकी नई पार्टी, जन स्वराज पार्टी, किसी भी गठबंधन से वोट काट सकती है और चुनाव के नतीजों को अप्रत्याशित बना सकती है। इस तरह, यह चुनाव न केवल परंपरागत सत्ता समीकरणों को चुनौती देगा बल्कि संभावित नई राजनीतिक धारा और युवा वोटरों के प्रभाव को भी उजागर करेगा।
एनडीए के लिए यह चिंता का विषय है कि अगर नीतीश कुमार के नेतृत्व में गठबंधन जीतता भी है, तो उनकी सेहत और निर्णय क्षमता चुनाव के बाद की राजनीति को प्रभावित कर सकती है। वहीं, विपक्षी महागठबंधन के लिए यह जरूरी है कि वह अपने पुराने शासन की छवि और “जंगल राज” के भय को चुनावी बहस से अलग कर सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार का यह चुनाव केवल जातीय और राजनीतिक समीकरणों तक सीमित नहीं रहेगा। युवा मतदाता, नई राजनीतिक पार्टियां और गठबंधनों के भीतर उठ रहे मतभेद इस बार चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकते हैं। प्रचलित सत्ता संतुलन को चुनौती देने वाली ये परिस्थितियां राज्य की राजनीति में नए दौर की शुरुआत कर सकती हैं।
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