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बोडोलैंड रेशम उद्योग में नई जान, सालाना आय पहुँची 1 लाख रुपये

बोडोलैंड के रेशम उद्योग को प्री-कोकून सहायता से नई गति मिली है। रेशम पालकों की सालाना आय 1 लाख रुपये तक पहुँच गई है, जिससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था सशक्त हुई।

असम के बोडोलैंड क्षेत्र में रेशम उद्योग ने हाल के वर्षों में अभूतपूर्व प्रगति की है। तीन वर्ष पूर्व शुरू की गई "सेरीकल्चर मिशन" (रेशम उत्पादन अभियान) ने इस उद्योग में नई जान फूँक दी है। प्री-कोकून सहायता योजना के तहत दिए गए प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और वित्तीय मदद ने रेशम पालकों की स्थिति बदल दी है।

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, पहले जहाँ बोडोलैंड के किसान रेशम उत्पादन को केवल परंपरागत और सीमित आय का साधन मानते थे, अब वही किसान इस व्यवसाय से स्थायी और सम्मानजनक जीवनयापन कर रहे हैं। तीन साल पहले शुरू हुए इस अभियान का असर इतना गहरा पड़ा है कि अब प्रत्येक रेशम पालक की सालाना आय औसतन 1 लाख रुपये तक पहुँच चुकी है।

रेशम उद्योग का यह विकास स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ कर रहा है। कई परिवार, जो पहले कृषि और छोटे-मोटे कामों पर निर्भर थे, अब रेशम पालन से आत्मनिर्भर हो रहे हैं। बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) प्रशासन का मानना है कि इस योजना ने युवाओं के लिए नए रोजगार अवसर खोले हैं और महिलाओं को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है।

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रेशम उत्पादन के इस मॉडल को अब अन्य जिलों में भी लागू करने की योजना है ताकि पूरे असम में रेशम उद्योग को एक मजबूत आर्थिक आधार के रूप में स्थापित किया जा सके। विशेषज्ञों का कहना है कि इस क्षेत्र में आधुनिक तकनीक और सरकारी सहयोग से भारत वैश्विक रेशम बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकता है।

इस तरह, प्री-कोकून सहायता न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक साबित हुई है, बल्कि बोडोलैंड को देश के प्रमुख रेशम केंद्र के रूप में उभरने का अवसर भी प्रदान कर रही है।

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