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AI और कॉपीराइट पर अदालतों के फैसले: क्या कहती है न्यायपालिका?

दुनिया भर की अदालतों ने AI द्वारा बनाए गए कंटेंट पर कॉपीराइट का अधिकार इंसानों को ही देने का समर्थन किया है, जिससे रचनात्मकता और तकनीक के बीच संतुलन तय हो रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते उपयोग ने कॉपीराइट कानूनों को एक नई चुनौती दी है, खासकर उस स्थिति में जब रचनात्मक कार्य जैसे लेख, चित्र, संगीत या कोड AI द्वारा तैयार किए जाते हैं। इस जटिल मुद्दे पर कई देशों की अदालतों ने अब तक अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका की एक अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि कॉपीराइट का दावा केवल "मानव रचनात्मकता" पर आधारित हो सकता है। AI द्वारा स्वचालित रूप से तैयार की गई किसी भी सामग्री पर उसके निर्माता को कॉपीराइट नहीं दिया जा सकता, जब तक उसमें इंसानी दखल या निर्देश न हो।

इसी प्रकार, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसी न्याय व्यवस्थाओं में भी यह रुख सामने आया है कि कॉपीराइट तभी मान्य होगा जब रचना में इंसानी प्रयास शामिल हो। ये फैसले यह सुनिश्चित करते हैं कि कॉपीराइट का मूल उद्देश्य — रचनात्मक श्रम का संरक्षण — केवल मनुष्यों के लिए सुरक्षित रहे।

हालांकि, कुछ अदालतों और बौद्धिक संपदा संगठनों ने AI को एक उपकरण मानते हुए, उसके माध्यम से किए गए रचनात्मक कार्यों में मानव निर्देशों को आधार मानकर सीमित अधिकार देने का विचार व्यक्त किया है।

इन फैसलों से यह साफ है कि न्यायपालिका फिलहाल AI को "स्वतंत्र रचनाकार" नहीं मानती और कॉपीराइट के लिए मानव भूमिका को अनिवार्य शर्त मानती है। यह रुख आने वाले समय में कानूनों को प्रभावित कर सकता है।

 
 
 
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