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सीपीआई के 100 वर्ष: पहले अधिवेशन में अध्यक्ष सिंगारवेलु का भाषण, गांधी के खादी अभियान की आलोचना से तिलक की प्रशंसा तक

सीपीआई के पहले अधिवेशन में एम. सिंगारवेलु ने अस्पृश्यता को आर्थिक समस्या बताया, कांग्रेस को बुर्जुआ कहा, खादी की आलोचना की और बुद्ध, ईसा, लेनिन व तिलक की चर्चा की।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर उसके पहले राष्ट्रीय अधिवेशन और उसमें दिए गए अध्यक्षीय भाषण पर एक बार फिर चर्चा हो रही है। 25 से 27 दिसंबर 1925 के बीच कानपुर में आयोजित पहले भारतीय कम्युनिस्ट सम्मेलन की अध्यक्षता एम. सिंगारवेलु ने की थी। अपने भाषण में उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को साम्यवादी दृष्टिकोण से परखते हुए कई विवादास्पद और दूरगामी विचार रखे थे।

सिंगारवेलु ने कांग्रेस को एक “बुर्जुआ” (पूंजीवादी हितों वाली) पार्टी बताया और कहा कि यह पार्टी आम मेहनतकश वर्ग के वास्तविक हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करती। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा जनसाधारण के लिए खादी को बढ़ावा देने के विचार को भी “समस्याग्रस्त” करार दिया और कहा कि यह जनता की बुनियादी आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं करता।

अपने भाषण में सिंगारवेलु ने अस्पृश्यता के मुद्दे को सामाजिक नहीं, बल्कि “पूरी तरह आर्थिक समस्या” बताया। उन्होंने कहा कि भारत की विशाल आबादी की आर्थिक निर्भरता ही अस्पृश्यता की जड़ है। जैसे ही आर्थिक निर्भरता समाप्त होगी, वैसे ही अस्पृश्यता का सामाजिक कलंक अपने आप मिट जाएगा।

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उन्होंने बुद्ध और ईसा मसीह को भी कम्युनिस्ट विचारधारा से जोड़ते हुए कहा कि उनके उपदेश समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित थे। इसके साथ ही सिंगारवेलु ने रूस की क्रांति के नेता व्लादिमीर लेनिन की प्रशंसा की और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता लोकमान्य तिलक को भी सम्मानपूर्वक याद किया।

यह भाषण उस दौर में कम्युनिस्ट आंदोलन की वैचारिक दिशा, सामाजिक मुद्दों पर उसके दृष्टिकोण और कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक ताकतों के प्रति उसके आलोचनात्मक रुख को स्पष्ट रूप से सामने रखता है।

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