दिल्ली सरकार ने निजी स्कूल फीस नियंत्रण का नया कानून लागू किया, शुल्क पर कड़े प्रावधान
दिल्ली सरकार ने निजी स्कूल फीस नियंत्रण के लिए नया कानून लागू किया, जिसमें शुल्क पर कड़े नियम, पारदर्शिता, कैपिटेशन शुल्क पर प्रतिबंध और अभिभावक-समिति द्वारा वार्षिक अनुमोदन का प्रावधान शामिल है।
दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों की फीस को नियंत्रित करने के लिए नया कानून लागू कर दिया है। ‘दिल्ली स्कूल एजुकेशन (ट्रांसपैरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीज़) एक्ट, 2025’ को उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना की मंजूरी के बाद 10 दिसंबर 2025 को अधिसूचित किया गया। यह अधिनियम निजी स्कूलों की फीस संरचना पर सख्त निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है।
कानून के तहत केवल निर्धारित फीस मदों—जैसे पंजीकरण शुल्क, प्रवेश शुल्क, ट्यूशन फीस, वार्षिक शुल्क और विकास शुल्क—की ही अनुमति होगी। पंजीकरण शुल्क 25 रुपये, प्रवेश शुल्क 200 रुपये और 500 रुपये का सावधि धन (कौशन मनी) निर्धारित किया गया है, जो ब्याज सहित वापस किया जाएगा। विकास शुल्क वार्षिक ट्यूशन फीस के 10% से अधिक नहीं हो सकेगा।
कानून के अनुसार, सभी सेवा-आधारित शुल्क ‘नो-प्रॉफिट, नो-लॉस’ आधार पर ही लिए जा सकेंगे और जिन छात्रों द्वारा सेवा का उपयोग नहीं किया जाता, उनसे यह शुल्क वसूलना प्रतिबंधित होगा। जो भी शुल्क कानून में स्पष्ट रूप से अनुमति प्राप्त नहीं है, उसे ‘अवैध शुल्क मांग’ माना जाएगा। किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष या परोक्ष कैपिटेशन शुल्क का कड़ाई से निषेध किया गया है।
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स्कूलों को सभी शुल्क मदों का स्पष्ट ब्योरा सार्वजनिक करना होगा और प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग खाते बनाए रखने होंगे। छात्र-जनित धनराशि को किसी अन्य संस्था या ट्रस्ट में स्थानांतरित करना प्रतिबंधित है। यदि अतिरिक्त राशि बचती है, तो उसे या तो वापस करना होगा या आने वाले वर्षों की फीस में समायोजित करना होगा।
अधिनियम का एक महत्वपूर्ण प्रावधान ‘स्कूल-स्तरीय शुल्क विनियमन समिति’ है, जिसे हर वर्ष 15 जुलाई तक गठित करना अनिवार्य होगा। इसमें पाँच अभिभावक शामिल होंगे, जिन्हें पीटीए से चुना जाएगा, और इनमें महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा। शिक्षा निदेशालय का एक प्रतिनिधि भी समिति में शामिल होगा।
स्कूलों को अपनी प्रस्तावित फीस संरचना 31 जुलाई तक समिति को भेजनी होगी। समिति इसे घटा सकती है लेकिन बढ़ा नहीं सकती। एक बार स्वीकृत होने पर यह फीस तीन वर्षों तक स्थिर रहेगी। अंतिम शुल्क संरचना को स्कूल नोटिस बोर्ड पर हिंदी, अंग्रेज़ी और शिक्षण माध्यम में प्रदर्शित करना और वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य होगा।
सरकार ने इस कानून को माता-पिता पर बढ़ते वित्तीय बोझ को कम करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया है।
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