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एच-1बी वीज़ा से लेकर रणनीतिक प्राथमिकताओं तक: भारत–अमेरिका संबंधों की चुनौतियों पर ध्रुव जयशंकर

ध्रुव जयशंकर ने कहा कि टैरिफ, आव्रजन और ट्रंप-युग की नीतियां भारत–अमेरिका संबंधों के लिए चुनौती हैं, लेकिन हिंद-प्रशांत और रणनीतिक सहयोग से साझेदारी मजबूत हो सकती है।

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध 21वीं सदी की सबसे निर्णायक वैश्विक साझेदारियों में गिने जाते हैं। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में टैरिफ, आव्रजन नीतियों और तेजी से बदलते भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण इस रिश्ते में कई संवेदनशील मुद्दे उभरे हैं। The Indian Witness के साथ विस्तृत बातचीत में ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन अमेरिका के कार्यकारी निदेशक ध्रुव जयशंकर ने भारत–अमेरिका संबंधों की जटिलताओं, ट्रंप-युग की नीतियों से पैदा हुई चुनौतियों और दोनों देशों को किन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, इस पर विस्तार से चर्चा की।

ध्रुव जयशंकर ने 10 दिसंबर को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति के समक्ष “यू.एस.–इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत की सुरक्षा” विषय पर अपनी गवाही दी थी। उन्होंने कहा कि भारत–अमेरिका संबंध केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि वैश्विक स्थिरता और सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम हैं।

बातचीत में उन्होंने बताया कि ट्रंप प्रशासन के दौरान अपनाई गई कुछ नीतियां—जैसे व्यापार शुल्क में बढ़ोतरी और सख्त आव्रजन नियम—भारत के लिए चिंता का विषय बनीं। खासकर एच-1बी वीज़ा से जुड़े मुद्दे भारतीय पेशेवरों और टेक्नोलॉजी सेक्टर को सीधे प्रभावित करते हैं। इससे लोगों से लोगों के संपर्क और आर्थिक सहयोग पर असर पड़ सकता है।

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जयशंकर ने यह भी कहा कि इन चुनौतियों के बावजूद भारत और अमेरिका के रणनीतिक हित कई अहम क्षेत्रों में एक-दूसरे से मेल खाते हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग, रक्षा साझेदारी और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखना दोनों देशों की साझा प्राथमिकताएं हैं।

उन्होंने आगाह किया कि यदि संवाद और आपसी समझ को लगातार मजबूत नहीं किया गया, तो नीतिगत मतभेद रिश्तों में दूरी पैदा कर सकते हैं। इसलिए दोनों देशों को व्यापार, आव्रजन, रक्षा और तकनीकी सहयोग जैसे क्षेत्रों में संतुलित और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

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