बिहार में वंशवादी राजनीति का संकट: रोहिणी बनाम तेजस्वी ने खोली लालू परिवार की कलह
लालू परिवार में वंशवादी राजनीति की दरारें गहरी हो चुकी हैं। रोहिणी-तेजस्वी विवाद ने RJD की हार और पारिवारिक फूट को उजागर कर दिया है, जिससे पार्टी भविष्य संकट में है।
बिहार की राजनीति में वंशवाद की सबसे बड़ी मिसाल माने जाने वाले लालू प्रसाद यादव के परिवार में इस समय गहरा संकट पैदा हो गया है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD की करारी हार के बाद परिवार के भीतर उठे तूफ़ान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है। यह संकट सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि गहरी पारिवारिक फूट का संकेत भी देता है।
लालू यादव की दूसरी बेटी रोहिणी आचार्या के बागी तेवरों ने इस वंश में उबल रहे नाराजगी के लावे को सबके सामने ला दिया है। रोहिणी का अपने भाई तेजस्वी और उनके करीबी सहयोगियों संजय यादव एवं रामिज खान पर गंभीर आरोप लगाना परिवार की खाई को और चौड़ा करता है। रोहिणी के बाद उनकी तीन बहनों—रजलक्ष्मी, रागिनी और चंदा—भी पटना स्थित आवास छोड़ चुकी हैं। रोहिणी ने यह भी आरोप लगाया कि उन्हें घर छोड़ने पर मजबूर किया गया और उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ।
तेज प्रताप यादव—जो पहले ही RJD और परिवार दोनों से छह साल के लिए निष्कासित किए जा चुके हैं—ने अपनी बहन का खुलकर समर्थन किया है। चाचा साधु यादव भी रोहिणी के साथ खड़े हैं। इससे परिवार की फूट लगभग सार्वजनिक हो चुकी है।
और पढ़ें: 17 नवंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार देंगे इस्तीफ़ा, NDA में नई सरकार गठन की तैयारी तेज़
इसी बीच तेजप्रताप की पूर्व पत्नी ऐश्वर्या राय को दो वर्ष पहले घर से निकालने की घटना और अब रोहिणी का आक्रोश यह दिखाता है कि परिवार के भीतर अविश्वास की दीवारें लगातार ऊँची होती गई हैं।
राजनीतिक तौर पर RJD की स्थिति बेहद खराब है। 2020 के 75 सीटों से पार्टी अब सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई है। महागठबंधन लगभग बिखर चुका है जबकि NDA का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा है।
वंशवाद की राजनीति जिस घर में पनपी, आज वही घर उसके बोझ तले बिखरता दिखाई देता है। लालू यादव अपने राजनीतिक जीवन के पतझड़ में हैं और उनकी बनाई राजनीतिक विरासत अब पारिवारिक कलह और महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ती दिख रही है।
और पढ़ें: मैं यस मैन नहीं बन सकता — चिराग पासवान ने बिहार की कानून व्यवस्था पर की टिप्पणी का बचाव