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कानूनी शिक्षा में अनुशासन, लचीलापन और भविष्य: दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने कानून छात्रों के लिए अनिवार्य उपस्थिति खत्म कर दी है। विशेषज्ञों ने इसे प्रगतिशील लेकिन व्यावहारिक चुनौतियों वाला निर्णय बताते हुए पहले शिक्षा ढांचे को मजबूत करने की जरूरत पर जोर दिया।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 नवंबर 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि भारत के किसी भी मान्यता प्राप्त विधि कॉलेज या विश्वविद्यालय में दाखिल छात्र को न्यूनतम उपस्थिति के आधार पर परीक्षा देने या आगे की पढ़ाई और करियर प्रगति से नहीं रोका जा सकता। अभी तक कानून छात्रों के लिए 70% उपस्थिति अनिवार्य थी, जिसे चिकित्सीय कारणों पर 65% तक ढील मिल सकती थी। यह निर्णय कानूनी शिक्षा में उपस्थिति को लेकर एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।

अदालत ने अपने फैसले में कई प्रगतिशील तर्क दिए।
पहला, विश्वविद्यालय जीवन छात्रों के युवावस्था के महत्वपूर्ण चरण में शुरू होता है, जहां अकादमिक उत्कृष्टता के साथ-साथ खेल, संगीत, नाटक, कला और सामाजिक कौशल जैसे समग्र विकास पर भी जोर होना चाहिए।
दूसरा, कानून की पढ़ाई केवल रटने या एकतरफा कक्षा शिक्षण तक सीमित नहीं है। यह कोर्ट सिस्टम, जेल सिस्टम, कानूनी सहायता, मूट कोर्ट, मॉडल संसद, बहस और न्यायालयी कार्यवाही के अनुभव जैसे कई व्यावहारिक पहलुओं से जुड़ी होती है। इसलिए केवल कक्षा में बैठना पर्याप्त नहीं।
तीसरा, नई शिक्षा नीति (NEP 2020) लचीलेपन, बहु-विषयक अध्ययन और ऑनलाइन शिक्षण पर जोर देती है। आज ऑनलाइन क्लास, वीडियो ट्यूटोरियल और डिजिटल संसाधनों से सीखना भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है।

फिर भी, दो दशक के अनुभव के आधार पर विशेषज्ञों ने कुछ चिंताएं भी व्यक्त की हैं। छात्रों की अनुपस्थिति अक्सर वैकल्पिक सीखने के कारण नहीं, बल्कि देर रात की पार्टियों, मोबाइल स्क्रीन टाइम, धूम्रपान और कभी-कभी नशे जैसी बढ़ती प्रवृत्तियों का परिणाम होती है। अनिवार्य उपस्थिति एक अनुशासनात्मक ढांचा प्रदान करती थी, जो कई छात्रों को पढ़ाई से जुड़े रहने में मदद करती थी। इसके हटने से अनुशासनहीनता बढ़ने की संभावना है।

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इसके अलावा, अदालत द्वारा सुझाए गए विकल्प—ऑनलाइन क्लास और अतिरिक्त असाइनमेंट—व्यावहारिक रूप से लागू करना कठिन हो सकता है, क्योंकि अधिकांश कानून कॉलेज पहले से ही स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं। एआई टूल्स के बढ़ते उपयोग से असाइनमेंट की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते हैं।

निर्णय का उद्देश्य शिक्षा को आधुनिक बनाना है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि पहले संस्थानों की क्षमता, शिक्षक संख्या और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना आवश्यक है, वरना यह कदम कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता को कमजोर कर सकता है।

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