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सोने की 200% वापसी: आपकी संपत्ति और निवेश पर क्या असर?

सोने ने पांच साल में 200% रिटर्न देकर निफ्टी को पीछे छोड़ा। महंगाई, रुपये की कमजोरी और वैश्विक अनिश्चितता कारण बने। विशेषज्ञ सलाह देते हैं, पोर्टफोलियो में 5-10% सोने का संतुलन रखें।

पिछले चार वर्षों में सोने ने चुपचाप निवेशकों को हैरान कर दिया है। 2020 में जहां सोने की कीमत लगभग 39,000 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, वहीं आज यह बढ़कर 1,15,000 रुपये तक पहुंच गई है। यानी महज पांच साल में लगभग 200% की बढ़त। यह रिटर्न न केवल सामान्य निवेशकों की उम्मीदों से परे है, बल्कि इसने निफ्टी 50 जैसे इक्विटी इंडेक्स को भी पीछे छोड़ दिया। जो लोग सोने को “सुरक्षित लेकिन उबाऊ” निवेश मानते थे, उनके लिए यह एक बड़ी सीख साबित हुई है।

इस उछाल के पीछे कई कारण रहे। महामारी, युद्ध और वैश्विक आपूर्ति संकट जैसी अनिश्चितताओं ने निवेशकों को सोने की ओर धकेला। रुपये की कमजोरी और बढ़ती महंगाई ने घरेलू कीमतों को और ऊपर पहुंचाया। केंद्रीय बैंकों ने भी बड़े पैमाने पर सोना खरीदा, जिससे मांग और तेज हो गई। नतीजा यह हुआ कि सोना सिर्फ एक सुरक्षात्मक विकल्प नहीं रहा, बल्कि दुनिया के सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले एसेट्स में शामिल हो गया। भारतीय परिवार, जिनके पास पहले से लाखों टन सोना आभूषण और सिक्कों के रूप में सुरक्षित है, उनकी संपत्ति अनजाने में ही दोगुनी हो गई। ज्वैलरी कारोबारियों और निवेशकों ने भी इस लहर का भरपूर फायदा उठाया।

अब सवाल यह है कि आगे क्या करना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि पोर्टफोलियो में सोने का हिस्सा 5 से 10% होना चाहिए—यह जोखिम संतुलित करता है, लेकिन अत्यधिक निवेश से इक्विटी जैसी संपत्तियों का फायदा चूक सकता है। निवेश के लिए गहनों की बजाय गोल्ड ईटीएफ, बार या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड ज्यादा उपयोगी विकल्प हैं। लंबी अवधि की सोच रखते हुए सोने को संतुलनकारी एसेट मानना ही समझदारी है।

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