अरावली की सुरक्षा को लेकर सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध, कांग्रेस फैला रही भ्रम: भूपेंद्र यादव
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा। केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में सख्त शर्तों के साथ ही खनन संभव है।
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सोमवार को अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस इस मुद्दे पर भ्रम, गलत सूचना और झूठ फैला रही है, जबकि केंद्र सरकार अरावली की सुरक्षा और पुनर्स्थापन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
दिल्ली में आयोजित प्रेस वार्ता में यादव ने कहा कि नई परिभाषा के बावजूद अरावली क्षेत्र का बड़ा हिस्सा पूरी तरह संरक्षित है और कानूनी रूप से खनन केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही संभव है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस शासनकाल में राजस्थान में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हुआ, जबकि मौजूदा सरकार पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है।
मंत्री ने स्पष्ट किया कि अरावली की नई कानूनी परिभाषा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश पर स्वीकृत की गई है। इसका उद्देश्य अवैध खनन पर रोक लगाना और केवल वैज्ञानिक व सतत मानकों के आधार पर सीमित और कानूनी खनन की अनुमति देना है। इसके लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद द्वारा संपूर्ण अरावली क्षेत्र के लिए सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार की जाएगी।
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इस अध्ययन के तहत उन क्षेत्रों की पहचान की जाएगी जहां केवल विशेष और वैज्ञानिक रूप से उचित परिस्थितियों में ही खनन की अनुमति दी जा सकती है। साथ ही, पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील, संरक्षण-आवश्यक और पुनर्स्थापन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा।
भूपेंद्र यादव ने बताया कि राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के 37 अरावली जिलों में कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 0.19 प्रतिशत हिस्सा ही वैध खनन के अंतर्गत आता है। दिल्ली, जहां अरावली के पांच जिले हैं, वहां किसी भी प्रकार का खनन अनुमत नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, नई खनन लीज तब तक नहीं दी जाएगी जब तक पूरी अरावली के लिए सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार नहीं हो जाती। मौजूदा खदानें भी तभी संचालित हो सकेंगी जब वे निर्धारित पर्यावरणीय मानकों का कड़ाई से पालन करेंगी।
हालांकि, कुछ पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों ने चिंता जताई है कि नई परिभाषा में 100 मीटर ऊंचाई की शर्त के कारण कई पारिस्थितिकी रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र बाहर हो सकते हैं। इस पर सरकार ने दोहराया कि 90 प्रतिशत से अधिक अरावली क्षेत्र पहले की तरह संरक्षित है और पर्यावरणीय सुरक्षा में कोई ढील नहीं दी गई है।
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