प्राचीन भारत में धर्म का अर्थ कर्तव्य था, न कि धर्म : गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राचीन भारत में धर्म का अर्थ कर्तव्य था, और छात्रों से सत्य व धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान किया।
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने शनिवार को कहा कि प्राचीन भारत में ‘धर्म’ का अर्थ ‘धार्मिक पहचान’ नहीं बल्कि ‘कर्तव्य’ था। उन्होंने कहा कि हमें धर्म को अपने जीवन के कर्तव्यों के रूप में अपनाना चाहिए, क्योंकि यही सच्चे अर्थों में भारत की संस्कृति और दर्शन की आत्मा है।
वडोदरा स्थित महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (एमएसयू) के 74वें दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए आचार्य देवव्रत ने छात्रों से आग्रह किया कि वे ‘सत्य’ और ‘धर्म’ के मार्ग पर चलें और अपने कर्मों को अपने भविष्य का मार्गदर्शक बनाएं। उन्होंने कहा, “धर्म का अर्थ पूजा-पाठ नहीं बल्कि अपने दायित्वों का पालन करना है। जब हम अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं, तभी समाज और देश का उत्थान संभव है।”
राज्यपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत” के सपने का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने भी नागरिकों से ‘धर्म’ को कर्तव्य के रूप में अपनाने की अपील की है ताकि देश आत्मनिर्भर और समृद्ध बन सके।
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आचार्य देवव्रत ने युवाओं को नैतिकता, सेवा और सत्यनिष्ठा के मूल्यों को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि “जीवन में सफलता केवल ज्ञान से नहीं बल्कि चरित्र और अनुशासन से मिलती है। विद्यार्थी जब सत्य और धर्म के मार्ग पर चलेंगे, तब वे समाज के सच्चे परिवर्तनकारी बनेंगे।”
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