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कठोर और दमनकारी: हिमाचल हाईकोर्ट ने स्टाफ नर्स की संविदा सेवा समाप्ति का आदेश रद्द किया

हिमाचल हाईकोर्ट ने स्टाफ नर्स की संविदा सेवा समाप्ति को कठोर बताते हुए रद्द किया और तीन साल की सेवा को देखते हुए कानून के अनुसार नियमितीकरण पर विचार का निर्देश दिया।

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्टाफ नर्स की संविदात्मक नियुक्ति वापस लेने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि तीन वर्षों से अधिक समय तक सेवा देने के बाद बिना किसी धोखाधड़ी या गलत प्रस्तुति के आरोप के उनकी सेवाएं समाप्त करना “कठोर और दमनकारी” होगा।

यह आदेश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एकल पीठ ने 12 दिसंबर को पारित किया। अदालत ने चिकित्सा शिक्षा विभाग में कार्यरत स्टाफ नर्स काजल मेहरा द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार करते हुए स्वास्थ्य सेवा निदेशक, हिमाचल प्रदेश के 31 अगस्त 2024 के आदेश को निरस्त कर दिया। उक्त आदेश में यह कहते हुए उनकी संविदा नियुक्ति वापस ली गई थी कि वह वर्ष 2011 बैच के तहत चयन के लिए पात्र नहीं थीं।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ने तीन वर्षों से अधिक समय तक निरंतर सेवा दी है और उनके विरुद्ध किसी प्रकार की धोखाधड़ी, गलत जानकारी देने या नियमों को जानबूझकर तोड़ने का कोई आरोप नहीं है। ऐसे में उनकी सेवाएं अचानक समाप्त करना न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता।

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अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि संबंधित विभाग कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के नियमितीकरण (रेगुलराइजेशन) के मामले पर विचार करे। कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारी ने ईमानदारी से लंबे समय तक सेवा दी है, तो तकनीकी आधारों पर उसकी नौकरी छीनना संवैधानिक मूल्यों और सेवा न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध होगा।

यह फैसला राज्य में संविदा कर्मचारियों के अधिकारों की दृष्टि से अहम माना जा रहा है। इससे यह संदेश गया है कि प्रशासनिक चूक या पात्रता से जुड़े विवादों का बोझ कर्मचारियों पर डालना उचित नहीं है, खासकर तब जब उन्होंने बिना किसी गलती के वर्षों तक सेवा दी हो।

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