हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ का विवाद: पीएम मोदी ने कहा– यह हिंदू जीवनशैली को बदनाम करने की कोशिश
पीएम मोदी ने “हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ” शब्द को हिंदू विश्वासों को बदनाम करने वाला बताया। अर्थशास्त्री इसे नीतिगत कारणों से जोड़ते हैं, जबकि हालिया बहस में इसे भारत की आर्थिक प्रगति से जोड़ा गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को “हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ” शब्दावली को सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि भारत की आर्थिक सुस्ती को हिंदू धर्म या हिंदू जीवनशैली से जोड़ना एक “जानबूझकर किया गया विकृतिकरण” है। उन्होंने कहा कि यह शब्द भारत की धार्मिक पहचान को नीचा दिखाने और उसके विकास संघर्ष को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास था।
पीएम मोदी ने कहा कि आज भारत विश्व में विश्वास, स्थिरता और विकास का स्तंभ बनकर उभर रहा है। उन्होंने कहा कि जब दुनिया मंदी और अनिश्चितता की बात करती है, भारत विकास की कहानियाँ लिख रहा है। “आज भारत एक अलग लीग में खड़ा है— आत्मविश्वास और दृढ़ता की वजह से”।
‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ शब्द का अर्थ:
इस शब्द को अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने 1978 में गढ़ा था, जो आज़ादी के बाद 1950 से 1980 के बीच भारत की लगभग 3.5-4% वार्षिक GDP वृद्धि को दर्शाता था। इस शब्द का मतलबी संकेत यह था कि भारत की धीमी आर्थिक प्रगति “हिंदू जीवनशैली” से जुड़ी थी— मानो भारतीय भाग्य को स्वीकार कर लेने और कम में संतुष्ट रहने की प्रवृत्ति रखते हों।
विवाद और आलोचना:
अर्थशास्त्रियों ने इसे गलत अवधारणा बताया और स्पष्ट किया कि वास्तविक कारण सरकार की नीतियाँ, अत्यधिक नियंत्रण और कठोर विनियम थे— न कि धर्म। 1990 के बाद उदारीकरण के साथ भारत की वृद्धि तेज हुई।
2023 में, पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने GDP आंकड़ों के आधार पर चेतावनी दी कि भारत “हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ” के करीब है, लेकिन SBI समेत कई अर्थशास्त्रियों ने इसे भ्रामक बताया।
इसी वर्ष BJP सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने “हिंदुत्व रेट ऑफ ग्रोथ” शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा कि भारत की तेज आर्थिक वृद्धि धर्म के अनुरूप विकास दृष्टिकोण और गरीबों के हित में नीतियों का परिणाम है।
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