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छोटे किसानों की आजीविका सुरक्षा के लिए समावेशी बाजारों के निर्माण की जरूरत: विशेषज्ञ

राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों ने छोटे किसानों की आजीविका सुरक्षा और स्थानीय खाद्य प्रणालियों को मजबूत करने के लिए निष्पक्ष व समावेशी बाजार तथा पारिस्थितिक खेती पर जोर दिया।

देश भर के विशेषज्ञों और कृषि क्षेत्र से जुड़े व्यावहारिक जानकारों ने छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका सुरक्षा मजबूत करने के लिए निष्पक्ष और समावेशी बाजारों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया है। सप्ताहांत में आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि जब तक किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य और बाजार तक सीधी पहुंच नहीं मिलेगी, तब तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था और स्थानीय खाद्य प्रणालियों को सशक्त नहीं किया जा सकता।

यह दो दिवसीय सम्मेलन “फूड सिस्टम्स ट्रांसफॉर्मेशन: फ्रॉम इकोलॉजिकल फार्म्स टू फेयर मार्केट्स” विषय पर आयोजित किया गया। सम्मेलन का आयोजन राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित स्वैच्छिक संगठन वागधारा ने किया, जो आदिवासी आजीविका से जुड़े मुद्दों पर काम करता है। इस आयोजन में जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे (Welthungerhilfe) और सेंटर फॉर वर्ल्ड सॉलिडैरिटी ने सहयोग किया।

सम्मेलन के दौरान विशेषज्ञों ने कहा कि छोटे किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती बाजार तक पहुंच और बिचौलियों पर निर्भरता है। निष्पक्ष और पारदर्शी बाजार व्यवस्था से न केवल किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री मिल सकेगी। वक्ताओं ने यह भी कहा कि स्थानीय स्तर पर मजबूत खाद्य प्रणालियों का निर्माण खाद्य सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।

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राजस्थान में पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) खेती को बढ़ावा देने पर भी विशेष चर्चा की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए की जाने वाली खेती से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, जल संरक्षण होता है और किसानों की उत्पादन लागत घटती है। इससे लंबे समय में किसानों की आय स्थिर और सुरक्षित हो सकती है।

सम्मेलन में शामिल कृषि विशेषज्ञों और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने नीति निर्माताओं से आग्रह किया कि वे छोटे और सीमांत किसानों को केंद्र में रखकर नीतियां बनाएं, ताकि खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि समावेशी बाजार और पर्यावरण अनुकूल खेती ही भविष्य की खाद्य सुरक्षा की कुंजी हैं।

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