×
 

भारत के समुद्री सुधारों को संतुलित दिशा की ज़रूरत

भारत के समुद्री सुधार आधुनिकता की दिशा में अहम हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इन्हें संघीय संतुलन और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के साथ लागू करना ज़रूरी है।

भारत हाल के वर्षों में समुद्री क्षेत्र में बड़े सुधारों की दिशा में आगे बढ़ा है। सरकार का उद्देश्य देश की समुद्री नीतियों और कानूनों को आधुनिक बनाना है ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत अपनी भूमिका मजबूत कर सके। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इन सुधारों की दिशा में सावधानी बरतने की आवश्यकता है, क्योंकि अगर संतुलन खोया तो यह संघीय ढांचे और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।

भारत के पास लंबा समुद्री तट और विशाल व्यापारिक क्षमता है, जिसके चलते यह क्षेत्र आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए अहम माना जाता है। सरकार ने हाल में कई विधायी सुधारों की पहल की है, जिनका लक्ष्य समुद्री परिवहन को सरल बनाना और निजी निवेश को आकर्षित करना है।

लेकिन चिंताएं भी सामने आई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सुधार इस तरह न हों जिससे राज्यों की भूमिका सीमित हो जाए या कुछ बड़ी कंपनियों को अत्यधिक लाभ मिल सके। समुद्री कानूनों और नीतियों में बदलाव करते समय यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि छोटे खिलाड़ियों, क्षेत्रीय उद्यमों और स्थानीय समुदायों को भी बराबर अवसर मिले।

और पढ़ें: अगस्त में सेवा क्षेत्र की वृद्धि 15 साल के उच्च स्तर पर, लेकिन महंगाई का दबाव बढ़ा

इसके अलावा, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि सुधारों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया जाए ताकि भारत की शिपिंग और बंदरगाह सेवाएं अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकें। साथ ही, पर्यावरणीय सुरक्षा और श्रमिकों के अधिकारों की भी अनदेखी नहीं होनी चाहिए।

इसलिए यह ज़रूरी है कि भारत के समुद्री सुधार आधुनिकता और दक्षता को बढ़ावा दें, लेकिन संघीय संतुलन और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा की नींव को भी सुरक्षित रखें।

और पढ़ें: आँकड़ों से परे: भारत का 99 अरब डॉलर का व्यापार घाटा क्यों है सबसे बड़ी चुनौती

 
 
 
Gallery Gallery Videos Videos Share on WhatsApp Share