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भारत–मॉरिशस के बीच ब्लू इकोनॉमी और महासागर तकनीक में सहयोग पर जोर: डॉ. जितेन्द्र सिंह

डॉ. सिंह ने कहा, “तकनीक पारदर्शिता की कुंजी है, और पारदर्शिता परिवर्तन का मार्ग।” उन्होंने इसे भारत–मॉरिशस के गहरे सांस्कृतिक संबंधों और भविष्य-केंद्रित साझेदारी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बुधवार को भारत और मॉरिशस के बीच ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था) और महासागर तकनीकों में गहरा सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह दोनों समुद्री देशों के लिए साझा अवसरों का क्षेत्र है, जो सतत विकास और पारस्परिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (NCGG), नई दिल्ली में मॉरिशस के वरिष्ठ अधिकारियों के दल को संबोधित करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि मछली पालन, महासागर आधारित तकनीक और विलवणीकरण (desalination) भविष्य के सतत विकास के नए आयाम हैं। उन्होंने बताया कि भारत के डीप ओशन मिशन और विलवणीकरण तकनीक ने लक्षद्वीप जैसे द्वीपीय क्षेत्रों में पीने योग्य जल उपलब्ध कराया है।

उन्होंने कहा, “समुद्र में जल सर्वत्र है, पर पीने योग्य नहीं — इस विरोधाभास को तकनीक से दूर किया जा सकता है।” भारत की विलवणीकरण परियोजनाएँ समुद्री जल को पेयजल में बदलने के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा भी उत्पन्न कर रही हैं।

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डॉ. सिंह ने मॉरिशस को महासागरीय अनुसंधान, ब्लू इकोनॉमी और डिजिटल गवर्नेंस में संयुक्त परियोजनाएँ शुरू करने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के वैज्ञानिक संस्थान मिलकर अगले दस वर्षों के लिए सतत महासागरीय विकास का खाका तैयार कर सकते हैं।

मॉरिशस के 14 मंत्रालयों के 17 वरिष्ठ अधिकारियों का यह दौरा वरिष्ठ सिविल सेवकों के द्वितीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम का हिस्सा है, जो 10 से 15 नवंबर तक NCGG में आयोजित हो रहा है। इस कार्यक्रम के तहत अगले पाँच वर्षों में भारत 500 मॉरिशस अधिकारियों को प्रशिक्षित करेगा।

मॉरिशस प्रतिनिधिमंडल ने भारत के सहयोग की सराहना की, विशेषकर नवीकरणीय ऊर्जा, फॉरेंसिक प्रयोगशाला स्थापना, फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट्स और डिजिटल गवर्नेंस में।

डॉ. सिंह ने कहा, “तकनीक पारदर्शिता की कुंजी है, और पारदर्शिता परिवर्तन का मार्ग।” उन्होंने इसे भारत–मॉरिशस के गहरे सांस्कृतिक संबंधों और भविष्य-केंद्रित साझेदारी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया

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