इंडिगो फ्लाइट संकट: अधिक मुआवज़े की मांग वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने इंडिगो उड़ान रद्दीकरण पर अधिक मुआवज़े की मांग वाली याचिका खारिज की। अदालत ने कहा कि मामला पहले से लंबित है और उसमें हस्तक्षेप किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार (17 दिसंबर 2025) को उस जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार और इंडिगो एयरलाइन को नवंबर और दिसंबर में उड़ानें रद्द होने से प्रभावित यात्रियों को टिकट की पूरी कीमत से चार गुना मुआवज़ा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी। यह रद्दीकरण नए फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) नियम लागू होने के बाद हुए थे।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर पहले से ही एक अन्य जनहित याचिका में संज्ञान लिया जा चुका है। अदालत ने याचिकाकर्ता को लंबित मामले में हस्तक्षेप आवेदन दाखिल करने की स्वतंत्रता देते हुए वर्तमान याचिका को निस्तारित कर दिया।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा विकसित जनहित याचिका से जुड़े न्यायशास्त्र के अनुसार, पहले से लंबित याचिका के दायरे का विस्तार किया जा सकता है। इसलिए अलग से इस याचिका पर सुनवाई का कोई कारण नहीं है।
याचिकाकर्ता ‘सेंटर फॉर अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमिक चेंज’ (CASC) की ओर से कहा गया कि इंडिगो संकट ने विमानन क्षेत्र में व्यापक चिंता पैदा की है। अचानक हुए व्यवधान और आखिरी समय में हजारों उड़ानें रद्द होने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा और वे हवाई अड्डों पर फंसे रहे।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता वीराग गुप्ता ने बताया कि हवाई अड्डों पर गलत जगह पहुंचा सामान, लंबा इंतजार, एयरलाइंस की ओर से अपर्याप्त जानकारी और रिफंड या री-बुकिंग को लेकर भारी भ्रम की स्थिति बनी रही।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) की कथित लापरवाही और चूक की जांच किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या लोकपाल से कराई जाए।
गौरतलब है कि 10 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने पहले ही केंद्र सरकार से सवाल किया था कि इंडिगो उड़ानों के रद्द होने से पैदा हुए संकट को समय रहते क्यों नहीं रोका गया, जिससे लाखों यात्री प्रभावित हुए और अन्य एयरलाइंस ने ऊंचे किराए वसूले।