क्या सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर बढ़ रहीं ममता बनर्जी? मंदिर निर्माण की राजनीति के मायने
ममता बनर्जी द्वारा लगातार मंदिर परियोजनाओं की शुरुआत से ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की बहस तेज हुई है। मुख्यमंत्री इसे धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के सम्मान की नीति बता रही हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों राज्य में लगातार मंदिर परियोजनाओं की शुरुआत को लेकर राजनीतिक बहस के केंद्र में हैं। अप्रैल में उन्होंने दक्षिण बंगाल के तटीय शहर दीघा में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया था। इसके बाद इस सप्ताह कोलकाता में देवी दुर्गा को समर्पित एक भव्य मंदिर और सांस्कृतिक परिसर की आधारशिला रखी गई। वहीं, जनवरी के दूसरे सप्ताह में उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में महाकाल मंदिर परियोजना का उद्घाटन प्रस्तावित है।
इन घटनाक्रमों के चलते यह सवाल उठने लगा है कि क्या ममता बनर्जी अब ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राजनीति को अपना रही हैं। खासतौर पर इसलिए भी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से उन पर “अल्पसंख्यक तुष्टिकरण” का आरोप लगाती रही है।
कोलकाता के न्यू टाउन इलाके में 17 एकड़ में बनने वाले ‘दुर्गा आंगन’ मंदिर और सांस्कृतिक परिसर की आधारशिला रखने के बाद ममता बनर्जी ने इन आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने कहा, “कई लोग मुझ पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं, लेकिन मैं एक सच्ची धर्मनिरपेक्ष नेता हूं। मैं सभी धर्मों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में विश्वास करती हूं।”
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उन्होंने आगे कहा कि ऐसा कोई धर्म नहीं है जिसके उत्सव में वह शामिल न होती हों। “मैं गुरुद्वारे जाती हूं तो सिर ढकती हूं। जब मैं रोज़ा रखती हूं या रोज़ेदारों के बीच जाती हूं, तो लोगों को आपत्ति क्यों होती है? हर धर्म की अपनी सांस्कृतिक परंपराएं होती हैं, मैं किसी को नजरअंदाज कैसे कर सकती हूं?” ममता बनर्जी ने समाज में बढ़ती हिंसा और विभाजन पर चिंता जताते हुए कहा कि वह देवी दुर्गा से बुराई के विनाश की प्रार्थना करेंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन मंदिर परियोजनाओं के जरिए ममता बनर्जी बहुसंख्यक समाज के सांस्कृतिक भावनाओं को साधने की कोशिश कर रही हैं, साथ ही अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को भी बनाए रखना चाहती हैं। यह कदम आगामी चुनावों को देखते हुए एक संतुलित राजनीतिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
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