सबूतों के अभाव में जम्मू-कश्मीर अदालत ने आतंकी गतिविधियों के आरोप से तीनों को किया बरी
जम्मू-कश्मीर की सत्र अदालत ने सबूतों और गवाहों की कमी के कारण आतंक गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार तीनों लोगों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
जम्मू-कश्मीर की एक सत्र अदालत ने आतंकवादी गतिविधियों में कथित संलिप्तता के आरोपों का सामना कर रहे तीन आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
यह फैसला अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने सुनाया, जो एनआईए अधिनियम के तहत नामित विशेष न्यायाधीश भी हैं। बरी किए गए आरोपियों की पहचान वाजिद अहमद भट, मसरत बिलाल भूरू और रमीज़ अहमद डार के रूप में हुई है। तीनों कुलगाम जिले के निवासी हैं। अदालत ने सोमवार (29 दिसंबर) को आदेश दिया कि यदि ये किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो इन्हें तत्काल रिहा किया जाए।
तीनों को पुलिस ने 10 अक्टूबर 2022 को श्रीनगर शहर के बटामालू इलाके में एक चेकपोस्ट से गिरफ्तार किया था। अभियोजन पक्ष का दावा था कि आरोपियों के पास से हथगोले और जिंदा कारतूस से भरी मैगजीन बरामद की गई थीं। हालांकि, अदालत ने पाया कि मामले में कई गंभीर खामियां हैं।
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अदालत ने कहा कि आपराधिक मुकदमे में केवल संदेह के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता और अभियोजन को हर हाल में आरोपों को संदेह से परे साबित करना होता है। न्यायाधीश मनजीत राय ने कहा कि इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी और बरामदगी को लेकर गंभीर विरोधाभास हैं।
अदालत ने यह भी नोट किया कि केस प्रॉपर्टी की पहचान के निशान दर्ज नहीं किए गए, सील के नमूनों को सुरक्षित नहीं रखा गया और इससे साक्ष्यों की कड़ी टूट गई। इसके अलावा, बम निरोधक दस्ते को हथगोले सौंपने की प्रक्रिया को लेकर भी विरोधाभासी बयान सामने आए।
गवाहों की बार-बार आरोपियों की सही पहचान न कर पाने, किसी स्वतंत्र गवाह की अनुपस्थिति और अल-बदर संगठन से कथित संबंधों को साबित करने वाले ठोस सबूतों के अभाव में अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ दिया। अदालत ने कहा कि आर्म्स एक्ट की धारा 7/25 के तहत भी आरोप सिद्ध नहीं हो सके।