देशभर में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में 50% से अधिक मामले लंबित, कई बोर्डों में स्टाफ की भारी कमी
देशभर के जुवेनाइल जस्टिस बोर्डों में 55% से अधिक मामले लंबित हैं। IJR रिपोर्ट के अनुसार स्टाफ की कमी, अवसंरचना और डेटा की अनुपलब्धता प्रमुख कारण हैं।
भारत में बाल न्याय से जुड़े मामलों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, देश के 362 जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJBs) में 31 अक्टूबर 2023 तक कुल मामलों में से 55% से अधिक मामले लंबित थे। ‘Juvenile Justice and Children in Conflict with the Law: A Study of Capacity at the Frontlines’ शीर्षक से यह अध्ययन इंडिया जस्टिस रिपोर्ट (IJR) की ओर से गुरुवार (20 नवंबर 2025) को जारी किया गया।
हालांकि भारत के 765 जिलों में से 92% में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड गठित किए जा चुके हैं, लेकिन राज्यवार लंबित मामलों का प्रतिशत काफी अलग-अलग है। ओडिशा में लंबित मामलों की दर 83% है, जबकि कर्नाटक में यह सबसे कम 35% है। यह अंतर दर्शाता है कि राज्यों में ढांचागत क्षमता, स्टाफ उपलब्धता और संसाधनों के स्तर में बड़ा अंतर है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश में JJBs से जुड़ी सूचनाओं के लिए कोई राष्ट्रीय स्तर का सार्वजनिक डेटा रिपॉजिटरी मौजूद नहीं है, जैसा कि नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के माध्यम से अदालतों के लिए उपलब्ध है। इस कारण JJBs की वास्तविक कार्यप्रणाली और दक्षता का आकलन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
अध्ययन के लिए IJR ने 21 राज्यों को 250 से अधिक आरटीआई आवेदन भेजे। प्राप्त जवाबों से पता चला कि 31 अक्टूबर 2023 तक देशभर के JJBs में कुल 1,00,904 मामलों में से आधे से भी कम मामलों का निपटारा किया गया था। बोर्डों में स्टाफ की कमी, विशेषज्ञों की अनुपस्थिति तथा अवसंरचना की कमी को मामले लंबित रहने का प्रमुख कारण बताया गया है।
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि यदि बच्चों से जुड़े मामलों का त्वरित और संवेदनशील निपटारा सुनिश्चित करना है, तो जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड्स को पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षित स्टाफ और मजबूत निगरानी प्रणाली प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है।