किशोर न्याय सुनिश्चित करने की चुनौती: नाबालिगों को वयस्क जेल भेजने से घटता है JJ एक्ट का प्रभाव
JJ एक्ट का उद्देश्य तब कमजोर पड़ जाता है जब नाबालिगों को वयस्क जेलों में भेजा जाता है, जिससे उनके पुनर्वास और सुधार की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) का मुख्य उद्देश्य नाबालिग अपराधियों को दंडित करने के बजाय उनके पुनर्वास और सुधार पर ध्यान केंद्रित करना है। यह कानून मानता है कि बच्चों और किशोरों में सीखने और बदलने की क्षमता अधिक होती है, इसलिए उन्हें वयस्क अपराधियों के साथ जेल में रखना उचित नहीं है।
हालांकि, हाल के मामलों में यह देखा गया है कि नाबालिगों को सीधे वयस्क जेलों में भेज दिया जाता है, जिससे JJ एक्ट की भावना और उद्देश्य कमजोर पड़ जाते हैं। वयस्क जेलों में भेजे जाने पर नाबालिग अपराधियों को कठोर माहौल, हिंसा और नकारात्मक प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनके सुधार की संभावना और भी कम हो जाती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नाबालिगों के साथ वयस्क कैदियों जैसा व्यवहार करना न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह उनके मानसिक और सामाजिक विकास पर भी गंभीर असर डालता है। संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि और कई अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार, नाबालिग अपराधियों को विशेष सुधार गृहों में रखा जाना चाहिए, जहां शिक्षा, काउंसलिंग और कौशल विकास की सुविधाएं उपलब्ध हों।
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JJ एक्ट के तहत भी स्पष्ट प्रावधान है कि 18 वर्ष से कम उम्र के अपराधियों को सुधार गृहों में रखा जाएगा और उनके मामलों की सुनवाई किशोर न्याय बोर्ड द्वारा की जाएगी। इसके बावजूद, कार्यान्वयन में ढिलाई, संसाधनों की कमी और कभी-कभी पुलिस व प्रशासन की लापरवाही के कारण नाबालिगों को वयस्क जेल भेजने की घटनाएं सामने आती हैं।
यदि वास्तव में किशोर न्याय सुनिश्चित करना है, तो कानून के प्रावधानों का सख्ती से पालन करना होगा और नाबालिग अपराधियों के पुनर्वास के लिए विशेष संस्थाओं को और अधिक सशक्त बनाना होगा। यह न केवल उनके भविष्य को बचाएगा बल्कि समाज को भी सुरक्षित बनाएगा।
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