लालू प्रसाद यादव का शांत नए घर में प्रवेश, RJD की राजनीति में बदलाव का संकेत
लालू यादव का शांत नए घर में जाना RJD में नेतृत्व परिवर्तन का संकेत है। स्वास्थ्य कारणों से उनकी सक्रियता कम हुई है और अधिकांश राजनीतिक कार्य अब तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं।
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव, जिनके घर कभी बिहार की सबसे व्यस्त राजनीतिक हलचल के केंद्र माने जाते थे, अब एक नए और शांत घर में शिफ्ट हो गए हैं। यह बदलाव सिर्फ निवास परिवर्तन नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक बड़े संक्रमण का संकेत माना जा रहा है।
कई दशकों तक लालू यादव के घर खुले राजनीतिक दरबार की तरह रहे।
1, अणे मार्ग से लेकर 10, सर्कुलर रोड तक—समर्थक, ग्रामीण, पत्रकार, पार्टी कार्यकर्ता और मंत्री बिना किसी रोक-टोक के आते-जाते थे। कभी-कभी परिसर में मवेशियों तक की मौजूदगी आम बात थी।
अब यह दौर बदलता दिख रहा है।
सूत्रों के अनुसार, नए घर में प्रवेश सख्त नियमों के साथ होता है। बिना अनुमति के किसी से मुलाकात नहीं होती, आगंतुकों की स्क्रीनिंग की जाती है और पार्टी कार्यकर्ताओं को भी पहले से समय लेना पड़ता है। घर का मुख्य उद्देश्य अब लालू यादव के स्वास्थ्य की देखभाल और उनके आराम को सुनिश्चित करना है। मेडिकल टीमें नियमित रूप से आती हैं और राजनीतिक चर्चाएं सीमित और नियंत्रित होती हैं।
और पढ़ें: बिहार चुनाव हार पर RJD की समीक्षा शुरू, तेजस्वी यादव दिल्ली रवाना
मुख्यमंत्री रहते हुए 1, अणे मार्ग एक प्रकार का जनशिकायत केंद्र बन गया था, जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों लोग अपनी समस्याओं के साथ पहुंचते थे। बाद में 10, सर्कुलर रोड राबड़ी देवी के कार्यकाल में राजनीतिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र बना रहा। त्योहार अक्सर राजनीतिक आयोजनों में बदल जाते थे और समर्थकों का आवागमन निरंतर बना रहता था।
नए घर की यह संरचित व्यवस्था RJD के भीतर हो रहे नेतृत्व परिवर्तन को भी दर्शाती है। अब अधिकांश संगठनात्मक कार्य, गठबंधन वार्ता और रणनीति बैठकें नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं।
लालू यादव अभी भी पार्टी की भावनात्मक और वैचारिक धुरी हैं, लेकिन रोजमर्रा का संचालन नई पीढ़ी के हाथों में जा चुका है।
कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के लिए यह परिवर्तन भावनात्मक है, क्योंकि खुले दरबार की राजनीति के प्रतीक रहे लालू यादव अब उम्र, स्वास्थ्य और कानूनी कारणों से अपेक्षाकृत एकांत जीवन जी रहे हैं।
इसे बिहार की जन-राजनीति के एक युग के शांत पड़ने और नए राजनीतिक दौर की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
और पढ़ें: बिहार चुनाव में RJD की करारी हार, लेकिन मुस्लिम-यादव वोट बैंक अब भी मज़बूत