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मद्रास सेंट्रल जेल से एलटीटीई उग्रवादियों की फरारी और दंगा: 30 साल पुरानी घटना

27 फरवरी 1995 को मद्रास सेंट्रल जेल से टाडा के तहत बंद नौ एलटीटीई उग्रवादी रहस्यमय ढंग से फरार हो गए, जिससे जेल सुरक्षा और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठे।

फरवरी 1995 की एक रात ने यह साबित कर दिया था कि लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) के उग्रवादी कितनी साहसिक और चौंकाने वाली कार्रवाई करने में सक्षम थे। यह घटना उस दौर में हुई, जब एलटीटीई पर भारत में प्रतिबंध लग चुका था, लेकिन इसके नेटवर्क और गतिविधियां तमिलनाडु में समय-समय पर सामने आ रही थीं।

27 फरवरी, 1995 की बात है। इससे लगभग चार साल पहले, श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली के दौरान एलटीटीई की आत्मघाती हमलावर धनु ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी थी। इस हत्या के बाद एलटीटीई को भारत में प्रतिबंधित संगठन घोषित किया गया। इसके बावजूद, इसके कई ऑपरेटिव तमिलनाडु में सक्रिय बताए जाते रहे।

उस फरवरी की रात करीब 10.15 बजे मद्रास सेंट्रल जेल से एक सनसनीखेज घटना सामने आई। जेल की दो सटी हुई कोठरियों से नौ एलटीटीई कैदी बाहर निकल आए। हैरानी की बात यह थी कि इन कोठरियों के ताले बंद ही नहीं थे। इन कैदियों ने किले जैसी सुरक्षा वाली मद्रास सेंट्रल जेल से बेहद साहसिक तरीके से फरारी कर ली।

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उस समय मद्रास सेंट्रल जेल, मद्रास सेंट्रल रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित थी, जो दिन-रात बेहद व्यस्त इलाका माना जाता है। जेल से बाहर निकलने के बाद सभी उग्रवादी दो समूहों में बंट गए और अलग-अलग दिशाओं में निकल गए, जिससे उनकी तलाश और भी चुनौतीपूर्ण हो गई।

फरार हुए सभी नौ कैदी आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी टाडा के तहत निरुद्ध थे। इस घटना के बाद न केवल जेल प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हुए, बल्कि पूरे तमिलनाडु में कानून-व्यवस्था को लेकर भी चिंता बढ़ गई।

यह घटना भारतीय जेल इतिहास की सबसे चौंकाने वाली घटनाओं में से एक मानी जाती है, जिसने सुरक्षा एजेंसियों को अपनी व्यवस्थाओं की समीक्षा करने के लिए मजबूर कर दिया था।

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