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पहाड़ों का गायब होना दुखद, लेकिन बदलाव संभव: पर्यावरणविद माधव गाडगिल

पर्यावरणविद माधव गाडगिल ने पहाड़ों के गायब होने पर चिंता जताई और कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर गरीबों पर पड़ेगा। उन्होंने सतत विकास और सामूहिक प्रयासों से बदलाव की संभावना बताई।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद और यूएनईपी के ‘चैम्पियन ऑफ द अर्थ’ पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर माधव गाडगिल ने कहा है कि पहाड़ों का धीरे-धीरे गायब होना बेहद दुखद है, लेकिन बदलाव की संभावना अब भी मौजूद है।

उन्होंने चेतावनी दी कि जलवायु परिवर्तन की रफ्तार लगातार बढ़ रही है, जिससे आने वाले समय में असमान पीड़ा का वितरण देखने को मिलेगा। “इस संकट का सबसे अधिक बोझ गरीबों पर पड़ेगा, जबकि अमीर वर्ग इससे अपेक्षाकृत कम प्रभावित होगा,” गाडगिल ने कहा।

पर्यावरणविद का मानना है कि पहाड़ी इलाकों में हो रहा अंधाधुंध खनन, वनों की कटाई और बेतरतीब निर्माण प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा दे रहा है। इसका असर न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी पर बल्कि वहां रहने वाले समुदायों के जीवन और आजीविका पर भी गहराई से पड़ रहा है।

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गाडगिल ने कहा कि स्थिति गंभीर जरूर है, लेकिन इसे बदला जा सकता है। इसके लिए सरकार, समाज और उद्योग जगत को मिलकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। उन्होंने सतत विकास, पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु अनुकूल नीतियों पर जोर दिया।

उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि स्थानीय समुदायों को निर्णय लेने में भागीदारी दी जाए और पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक उपायों के साथ जोड़ा जाए, तो पर्यावरणीय क्षति को रोका जा सकता है।

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