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यूपी की राजनीति में उठापटक: एनडीए सहयोगियों की बैठक से असंतोष के संकेत

एनडीए की गैर-भाजपा सहयोगी पार्टियों की बैठक ने असंतोष उजागर किया। लोकसभा नतीजों के बाद भाजपा-सहयोगियों के बीच भरोसे की कमी और जातीय समीकरणों में बदलाव दिखा।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल ही में हुए बदलावों ने एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के भीतर नई हलचल पैदा कर दी है। भाजपा के गैर-भाजपा सहयोगियों की बैठक से स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि गठबंधन के भीतर सबकुछ सहज नहीं है।

भाजपा के उत्थान में इन सहयोगी दलों—विशेषकर गैर-यादव पिछड़ी जातियों (OBC) के बीच पकड़ रखने वाली पार्टियों—की अहम भूमिका रही है। इन दलों को हिंदुत्व आधारित गठबंधन में शामिल कर भाजपा ने राज्य में मजबूत सामाजिक समीकरण तैयार किया था। लेकिन लोकसभा चुनाव में आए उलटफेर ने इस व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को उजागर कर दिया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक भाजपा और उसके सहयोगियों के बीच भरोसे की कमी को सामने लाती है। गैर-भाजपा दल अब यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी राजनीतिक हैसियत को भाजपा के व्यापक एजेंडे के चलते दबाया जा रहा है।

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कई सहयोगी दल चाहते हैं कि भाजपा उनके मुद्दों और क्षेत्रीय आकांक्षाओं को प्राथमिकता दे, जबकि भाजपा अपने व्यापक राष्ट्रीय एजेंडे पर ही जोर दे रही है। इस स्थिति ने एनडीए के भीतर तनाव पैदा कर दिया है, खासकर उन जातीय समूहों में जो भाजपा के लिए निर्णायक वोट बैंक रहे हैं।

यह उठापटक बताती है कि 2024 के बाद की राजनीति में भाजपा को अपने पुराने सहयोगियों को साधे रखना आसान नहीं होगा। यदि संवाद और संतुलन नहीं बना, तो यह समीकरण भविष्य में और चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

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