नेपाल में अशांति, त्रासदी और जनता का संघर्ष: सोशल मीडिया बैन से भड़की नाराज़गी
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के बाद भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के खिलाफ प्रदर्शन हिंसक हो गए। दर्जनों मौतों के बीच जनता की नाराज़गी राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संघर्ष का संकेत देती है।
नेपाल इस समय गहरी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। लंबे समय से जनता में राजनीतिक वर्ग के प्रति नाराज़गी पनप रही थी, लेकिन हाल ही में सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया। 8 सितंबर को जनता ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य राजनीतिक कुप्रबंधन और बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाना था।
शुरुआत में ये प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे, लेकिन धीरे-धीरे हालात बेकाबू होते गए। विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई जगहों पर हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें दर्जनों लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए। यह स्थिति नेपाल को एक गंभीर राजनीतिक मोड़ पर ले आई है, जहां शासन और जनता के बीच का अविश्वास खुलकर सामने आ गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि सोशल मीडिया बैन केवल एक बहाना बना, असल समस्या वर्षों से जमा होती जा रही असंतुष्टि और राजनीतिक नेतृत्व की विफलता है। जनता का मानना है कि नेताओं ने न तो विकास का वादा निभाया और न ही भ्रष्टाचार को नियंत्रित किया। परिणामस्वरूप, नाराज़गी अब सड़कों पर हिंसक विरोध में तब्दील हो चुकी है।
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नेपाल की मौजूदा स्थिति ने क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर भी चिंता बढ़ा दी है। पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की नज़र इस बात पर है कि नेपाल सरकार इस संकट से कैसे निपटती है।
यह आंदोलन केवल असंतोष नहीं, बल्कि उस जुझारूपन का प्रतीक है जिसके जरिए जनता अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए सड़कों पर उतर आई है। आने वाले दिनों में नेपाल की राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह अब पूरी तरह इस आंदोलन के परिणाम पर निर्भर करेगा।
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