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सरकार प्रस्तावित परमाणु विधेयक में रेडियोधर्मी अपशिष्ट और निजी क्षेत्र की भूमिका पर विचार कर रही है

सरकार प्रस्तावित परमाणु विधेयक में रेडियोधर्मी अपशिष्ट की सुरक्षित निपटान, इस्तेमाल हुए ईंधन के पुन:प्रसंस्करण और कोर नाभिकीय तकनीकों में निजी क्षेत्र की भागीदारी पर विचार कर रही है।

सरकार ने प्रस्तावित परमाणु विधेयक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार शुरू कर दिया है। इसमें प्रमुख ध्यान केंद्रित है रेडियोधर्मी अपशिष्ट की सुरक्षित निपटान, इस्तेमाल हुए नाभिकीय ईंधन (Spent Nuclear Fuel) के पुन:प्रसंस्करण और निजी क्षेत्र की भूमिका पर। अधिकारियों के अनुसार, यह विधेयक भारत की नाभिकीय ऊर्जा नीति को सुदृढ़ करने और भविष्य में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से तैयार किया जा रहा है।

सरकारी सूत्रों ने बताया कि चर्चा का एक बड़ा हिस्सा यह है कि रेडियोधर्मी अपशिष्ट की जिम्मेदारी किसकी होगी और इसे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित तरीके से कैसे निपटाया जाएगा। इसके साथ ही, विधेयक में इस्तेमाल हुए ईंधन को पुन:प्रसंस्करण और इसके संभावित उपयोग को लेकर दिशा-निर्देश दिए जाने पर भी विचार किया जा रहा है।

इसके अलावा, सरकार कोर नाभिकीय तकनीकों में शोध और विकास (R&D) को बढ़ावा देने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी पर भी विचार कर रही है। इससे न केवल तकनीकी नवाचार को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ऊर्जा उत्पादन की दक्षता और सुरक्षा मानकों में सुधार भी संभव होगा।

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विशेषज्ञों का मानना है कि परमाणु विधेयक ऊर्जा उत्पादन और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने का प्रयास है। निजी क्षेत्र की भागीदारी निवेश और तकनीकी विकास के लिए अवसर प्रदान करेगी, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक और नियंत्रित तरीके से लागू करना जरूरी होगा।

सरकार ने संकेत दिया है कि विधेयक पर अंतिम निर्णय जल्द ही लिया जाएगा। इसके कार्यान्वयन से भारत में नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन और अनुसंधान के क्षेत्र में नई संभावनाओं का विकास होगा, साथ ही पर्यावरण और सुरक्षा मानकों को बनाए रखना प्राथमिकता बनी रहेगी।

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