यह किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं: अरावली पहाड़ियों पर खनन के खतरे से राजस्थान में तेज हुए विरोध
अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा से खनन का खतरा बढ़ने पर राजस्थान में विरोध तेज, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई।
राजस्थान में अरावली पहाड़ियों को लेकर विवाद एक बड़े राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दे के रूप में उभर रहा है। पहाड़ियों की एक नई समान परिभाषा (यूनिफॉर्म डेफिनिशन) को लेकर राज्यभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। आशंका जताई जा रही है कि इस नई परिभाषा के लागू होने से 692 किलोमीटर लंबी अरावली श्रृंखला का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खनन और निर्माण गतिविधियों के लिए असुरक्षित हो सकता है।
राज्य में अरावली की लगभग 550 किलोमीटर लंबी श्रृंखला स्थित है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 20 नवंबर को केंद्र सरकार के नेतृत्व वाले पैनल की सिफारिशों को स्वीकार किए जाने के फैसले के बाद राजस्थान में व्यापक नाराज़गी देखने को मिल रही है। वकीलों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और विपक्षी दलों के नेताओं ने इस फैसले के खिलाफ खुलकर आवाज उठाई है।
विपक्ष का आरोप है कि नई परिभाषा के चलते पहाड़ियों के बड़े हिस्से को अरावली के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा, जिससे वहां खनन और रियल एस्टेट गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। उनका कहना है कि इससे न केवल पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचेगा, बल्कि भूजल स्तर, जैव विविधता और स्थानीय लोगों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
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इस बीच, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने विपक्ष और आम जनता की चिंताओं पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि अरावली पहाड़ियों के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ की अनुमति नहीं दी जाएगी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध है और अरावली की सुरक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगी।
हालांकि, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि केवल बयानबाजी से काम नहीं चलेगा और सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। अरावली को लेकर यह मुद्दा आने वाले दिनों में राज्य की राजनीति और पर्यावरण बहस का केंद्र बने रहने की संभावना है।
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