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सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में हालिया निष्कासन ने पारदर्शिता पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में हालिया निष्कासन ने न्यायपालिका में पारदर्शिता पर मिश्रित संदेश दिए। कुछ जज बिना कारण बताए पीछे हटे, जबकि अन्य ने पारदर्शिता अपनाई।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में कुछ मामलों में न्यायाधीशों द्वारा किए गए निष्कासन (recusal) ने न्यायपालिका में पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस संबंध में कोई आधिकारिक नियम नहीं हैं कि न्यायाधीश किन परिस्थितियों में किसी मामले से खुद को अलग कर सकते हैं।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एम.एम. सुंदरश ने एक जमानत याचिका मामले से पीछे हटने का फैसला किया, लेकिन इसके पीछे कोई कारण सार्वजनिक नहीं किया। यह कदम न्यायिक पारदर्शिता के दृष्टिकोण से आलोचना का विषय बना।

वहीं दूसरी ओर, NCLAT के एक न्यायाधीश और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने निष्कासन करते समय पूर्ण पारदर्शिता अपनाई और कारणों का विवरण साझा किया। इस कदम को न्यायपालिका में विश्वास और जवाबदेही बनाए रखने के सकारात्मक उदाहरण के रूप में देखा गया।

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विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका में निष्कासन पर कोई स्पष्ट नियम होने के कारण हर न्यायाधीश की अलग-अलग प्रक्रिया और निर्णय देखने को मिलती है। इससे जनता में न्यायिक निर्णयों की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर मिश्रित संदेश जाता है।

कुल मिलाकर, हालिया घटनाओं ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय और ट्रिब्यूनल में न्यायाधीशों के निष्कासन और पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। जहां कुछ न्यायाधीश पारदर्शिता का उदाहरण पेश कर रहे हैं, वहीं कुछ ने बिना कारण बताए पीछे हटकर जनता के बीच सवाल खड़े किए हैं। इससे न्यायपालिका में विश्वास और जवाबदेही पर गंभीर चर्चा शुरू हुई है।

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