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चेन्नई के व्यक्ति की फांसी की सज़ा सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की; बलात्कार और हत्या के मामले में राहत

सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई बलात्कार और हत्या मामले में आरोपी की फांसी की सज़ा रद्द की। अदालत ने कहा—साक्ष्य पर्याप्त नहीं, अभियोजन दोष साबित करने में विफल रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई के एक व्यक्ति को बलात्कार और हत्या के मामले में दी गई फांसी की सज़ा को पलट दिया है। अदालत ने कहा कि साक्ष्यों में गंभीर विरोधाभास है और अभियोजन पक्ष आरोपी की दोषसिद्धि को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है।

यह मामला 2017 का है, जब चेन्नई के पास चेंगलपट्टू क्षेत्र में एक युवती की हत्या और बलात्कार का आरोप आरोपी व्यक्ति पर लगाया गया था। ट्रायल के बाद चेंगलपट्टू सत्र न्यायालय ने 19 फरवरी 2018 को आरोपी को मौत की सज़ा सुनाई थी, जिसे बाद में मद्रास हाई कोर्ट ने 10 जुलाई 2018 को बरकरार रखा था।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद पाया कि डीएनए रिपोर्ट, गवाहों के बयान और घटना स्थल से मिले साक्ष्य आपस में मेल नहीं खाते। अदालत ने कहा कि इस स्थिति में किसी व्यक्ति को फांसी देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत होगा।

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पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि निचली अदालतों को “भावनात्मक माहौल” में न जाकर तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की सज़ा को निरस्त करते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारत में मृत्युदंड के मामलों में साक्ष्य की ठोसता और निष्पक्षता की आवश्यकता पर जोर देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल सार्वजनिक भावना के आधार पर किसी को मृत्यु दंड नहीं दिया जा सकता।

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