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सुप्रीम कोर्ट आर्थिक नीतियों में दखल नहीं देता जब तक न हो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन — सीजेआई गवई

सीजेआई बी.आर. गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट आर्थिक नीतियों में तभी हस्तक्षेप करता है जब मौलिक अधिकार या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होता है, अन्यथा नीति मामलों में नहीं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने शनिवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट नीति मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, खासकर तब जब वे आर्थिक विचारों से जुड़े हों, जब तक कि किसी मौलिक अधिकार या संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन हो

सीजेआई गवई ने यह बात ‘भारत के संविधान की 75वीं वर्षगांठ और वाणिज्यिक कानून’ विषय पर आयोजित ‘6वीं पूर्ण बैठक – स्टैंडिंग इंटरनेशनल फोरम ऑफ कमर्शियल कोर्ट्स’ में कही। उन्होंने कहा कि भारत की न्यायपालिका ने देश की आर्थिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यह सुनिश्चित किया है कि कानून का शासन, पूर्वानुमान और स्थिरता कायम रहे — जो “Rule of Law” के मूल तत्व हैं।

उन्होंने कहा, “1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद से प्रत्येक दशक में कानून, अर्थव्यवस्था और न्याय के बीच की साझेदारी और मजबूत हुई है, जिससे भारत की विकास यात्रा न केवल वाणिज्यिक रूप से सशक्त बनी है बल्कि संवैधानिक मूल्यों पर भी आधारित रही है।”

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सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका ने हमेशा नीति निर्माण में कार्यपालिका और विधायिका की भूमिका का सम्मान किया है। सुप्रीम कोर्ट केवल उन्हीं मामलों में हस्तक्षेप करता है जहाँ संविधान या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका का काम आर्थिक विकास में स्थिरता और पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करना है ताकि निवेशकों और व्यवसायों को विश्वास बना रहे।

गवई ने यह भी जोड़ा कि वाणिज्यिक न्यायालयों और न्यायिक सुधारों ने भारत को अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए एक भरोसेमंद गंतव्य बनाया है।

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